गुरुवार, 5 जुलाई 2018

= साधु मिलाप मङ्गल उत्साह का अंग ३९(१६-१८) =

#daduji

卐 सत्यराम सा 卐
*दादू जब लग जीविये, सुमिरण संगति साध ।*
*दादू साधू राम बिन, दूजा सब अपराध ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi 
*साधु मिलाप मङ्गल उत्साह का अंग ३९*
परम पुरुष१ पारस परसि, मन लोहे ह्वै फेर । 
रैन दिव वेला२ न बल, रज्जब रार्यों३ हेर४ ॥१६॥ 
नेत्रों से३ देख४, पारस से मिलते ही लोहे में सुर्वण रूप परिर्वतन हो जाता है सो रात्रि-दिन रूप समय२ का बल नहीं मिलने का ही है, वैसे ही संत१ से मिलने से जीव के हृदय में संतत्त्व रूप परिर्वतन होता है वह समय विशेष के बल से नहीं होता संत संगति से ही होता है । 
जन रज्जब अज्जब दशा१, राजा परजा रुख२ । 
आनन्द पर आवहिं सभी, परविन३ पात्र४ पुरुख ॥१७॥ 
जलाशय४ में कमल३ खिले होते हैं तब उनके दर्शन तथा सुगंधजन्य आनन्द लेने की इच्छा२ से सभी पुरुष आनन्दप्रद समय पर ही आते हैं वैसे ही संतों के पास ब्रह्मानन्द प्राप्त करने की इच्छा से राजा तथा प्रजागण आते हैं और संतों के सत्संग से अद्भुत आनन्दमय अवस्था१ को प्राप्त होते हैं । 
अदभू१ मय आदम२ उङैं, देखि औदशा३ देश । 
रज्जब परवनि४ प५र पुरुष६, शुभ ठाहर परवेश ॥१८॥ 
जैसे सूर्य किरण के मिलने से कमल४ खिलकर उसकी राग वृत्ति सूर्य के स्वरूप में प्रवेश करती है, वैसे ही देखो, श्रेष्ठ५ संत६ पुरुषों के मिलन से वृक्ष१मय(जड़) मनुष्य२ भी दुदर्शा३ रूप पृथ्वी के प्रदेश से वृत्ति द्वारा उड़कर ब्रह्मरूप शुभ स्थान में प्रवेश करते है, अत: संत मिलन का महत्त्व महान् है । 
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इति श्री रज्जब गिरार्थ प्रकाशिका सहित साधु मिलाप मंगल का उत्सव का अंग ३९ समाप्त । सा. १३११ ॥
(क्रमशः)

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