#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविध्यालय (जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविध्यालय (चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= १-जकड़ी राग गौड़ी =*
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(७)
(ताल तिताला)
(स्त्री पुरुष संवाद)
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*कंत कहै सुनि सर्ब-सोहागनि तेरा बोल न रालौं ।*
*अबकै क्यौंही छूटन पाऊं बहुरि न तोहि संभालौं ॥२॥*
पुरुष ने उत्तर दिया - "हे सुहागन ! मैं अब तेरी बात नहीं मानूँगा । इस बार किसी प्रकार तुम्हारे बन्धन से छूट जाऊँ तो पुनः मैं तुम्हारा साथ किसी भी स्थिति में नहीं पकडूँगा" ॥२॥
*बहुरि त्रिया इक बात बिचारी यह कब हौं नहिं मेरौ ।*
*अबकै आइ पर्यौ तब मांही करि छाडौंगी चेरौ ॥३॥*
यह सुनकर उस स्त्री ने विचार किया यह मेरे अधीन कभी न हो पायगा । यदि इस बार यह मेरे अधीन हो जाय तो मैं इसे अपना 'दास' बनाकर छोडूँगी ॥३॥
*दोऊ मेल रहत नहिं दोसै इक दिन होंहि निराले ।*
*सुन्दरदास भये बैरागीं इन बातन के घाले ॥४॥*
अब हम दोनों में स्थायी मेल मिलाप होना कठिन दीख रहा है । एक न एक दिन पृथक् हो जाना निश्चित है । महात्मा कहते हैं - दुनियाँ का यह दैनिक कलह देखकर ही सब सन्त जन इस संसार को त्याग कर वैराग्यवान् हो गये ॥४॥
(क्रमशः)
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