बुधवार, 4 जुलाई 2018

= १७८ =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐

गोविंद के किये जीव जात हैं रसातल कौं, 
गुरु उपदेशे सो तो छूटैं जम फंद तैं । 
गोविंद के कीये जीव बस परे कर्मन के, 
गुरु के निवाजे सो फिरत हैं स्वच्छंद तैं ॥ 
गोविंद के कीये जीव बूड़त भौसागर में, 
सुन्दर कहत गुरु काढ़ैं दुख द्वंद्व तैं । 
और हूं कहां लौं कछु मुख तैं कहैं बनाइ, 
गुरु की तो महिमा अधिक है गोविंद तैं ॥२२॥ 
गुरु की महिमा गोविन्द से अधिक : महात्मा श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं - हम तो गोविन्द(सृष्टिकर्ता ईश्वर) की अपेक्षा गुरु की महिमा ही अधिक मानते हैं; क्योंकि उस गोविन्द का उत्पन्न किया प्रत्येक जीव यमराज का मृत्युपाश(अर्थात् जन्म मरण का फन्दा) अपने गले में डालकर निरन्तर रसातल(अधोगति) में ही जाने की तैयारी किये रहता है । जब कृपालु गुरुदेव उसे ब्रह्मोपदेश करते हैं तभी वह मुक्त हो पाता है१ । 
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(१. अन्य सन्त इसमें कारण बताते हैं - 
“गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, का कै लागूं पाइ । 
बलिहारी गुरुदेव की, जिन गोविन्द दियो बताइ ॥") 
२. उस ईश्वर की सृष्टि में उत्पन्न सभी जीव अपने कर्मों के अधीन रहते हुए सुख दुःख भोगने को विवश होते हैं । जब कृपालु गुरुदेव उन पर अनुकम्पा कर उन्हें ब्रह्मोपदेश करते हैं तभी उनका उस कर्मबन्धन से छुटकारा होता है । 
३. अथ च, उस गोविन्द द्वारा रचे हुए जीव, विषयों को भोगते हुए, इस भवसागर में डूबते उतारते रहते हैं । उन पर जब गुरुदेव अनुकम्पा करते हैं तभी उनकी सुख दुःख आदि द्वन्द्वों से मुक्ति हो पाती है । श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं - मैं अपने इस छोटे से मुख से गुरुदेव की महिमा का कहाँ तक वर्णन करूँ, अपनी अल्पमति के अनुसार मैं तो गुरुदेव की महिमा को इस सृष्टिकर्ता ईश्वर की अपेक्षा अधिक ही मानता हूँ ॥२२॥
*सवैया ग्रन्थ(सुन्दर विलास) - गुरुदेव को अंग* 
चित्र सौजन्य ~ Sant Sanmukhramji Ramsnehi

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