रविवार, 1 जुलाई 2018

= साधु मिलाप मङ्गल उत्साह का अंग ३९(१-४) =

#daduji

卐 सत्यराम सा 卐
*साधु मिलै तब हरि मिलै, सब सुख आनन्द मूर ।*
*दादू संगति साधु की, राम रह्या भरपूर ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi 
*साधु मिलाप मङ्गल उत्साह का अंग ३९*
इस अंग में सन्त मिलन से जो कल्याणप्रद उत्साह होता है उसका परिचय दे रहे हैं ~ 
राम सनेही जब मिलैं, तब ही आनन्द होय । 
जन रज्जब सो दिन भला, ता सम और न कोय ॥१॥ 
राम के प्यारे संत जब मिलते हैं तब परमानन्द का अनुभव होता है, जिस दिन संत मिलते हैं वह दिन बहुत ही अच्छा होता है, उसके समान जीवन का और कोई भी दिन नहीं हो सकता । 
साधु समागम होत ही, जीव जलन सब जाय । 
जन रज्जब युग युग सुखी, दुख नहिं लागे आय ॥२॥ 
संतों का समागम होते ही जीव के हृदय की चिन्तादिजन्य जलन दूर हो जाती है और प्राणी प्रति युग में ब्रह्म रूप होकर सुखी रहता है, फिर उसे जन्मादि दु:ख स्पर्श नहीं करते । 
सलिल१ शैल२ जड़हूं उड़े, पाये इन्द्र अवाज । 
तो सन्मुख किन चालिये, आवत सुन शिरताज ॥३॥ 
इन्द्र गर्जन की आवाज सुनकर पर्वत२ की जङों से जड़ जल१ भी स्वागतार्थ उड़ता है अर्थात पृथ्वी से उमगकर ऊपर आता है, तब मानव को अपने शिरोमणि संतों के आगमन को सुनकर उसके स्वागातार्थ अवश्य सामने जाना चाहिये । 
अति उछा आनन्द अति, मन मंगल सु कल्यान । 
रज्जब मिलतों संतजन, सुखसागर दर्शान ॥४॥ 
संतजनों से मिलने पर अति उत्साह होता है, महान् आनन्द मिलता है, कल्याणप्रद मंगल कार्य होने लगते हैं और सुख-सागर ब्रह्म का साक्षात्कार होता है ।
(क्रमशः)

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