मंगलवार, 10 जुलाई 2018

= शूरातन का अँग(२४ - ३७/३९) =

#daduji


卐 सत्यराम सा 卐
*"श्री दादू अनुभव वाणी"* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*शूरातन का अँग २४*
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जे हरि कोप करे इन ऊपर, तो काम कटक दल जाँहिं कहां । 
लालच लोभ क्रोध कत भाजे, प्रकट रहे हरि जहां तहां ॥३७॥ 
साधक - शँका, हमारे प्रयत्न बिना ही हरि कामादि को क्यों नहीं भगा देते ? उत्तर - यदि हरि इन काम - सेना, लालच, लोभ क्रोधादि के दल पर कोप करे तो ये भाग कर कहां जायेंगे ? कारण, हरि तो जहां - तहां सर्वत्र व्यापक हैं । यह बात विश्व में अति प्रकट है । अत: साधक को ही साधन द्वारा कामादि को हृदय से हटाना चाहिये ।
तब साहिब को सिजदा किया, जब शिर धरा उतार । 
यों दादू जीवित मरे, हिर्स हवा को मार ॥३८॥ 
जब सब प्रकार के अभिमान रूप शिर को उतार कर जिस साधक ने परमात्मा की वँदना भक्ति की है, तब ही वह अन्य विषयों की तृष्णा तथा स्वर्गादि भोगों की वासना को नष्ट करके जीवन्मुक्त हुआ है । ऐसे ही जीवितावस्था में मरण होता है ।
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*शूरातन*
दादू तन मन काम करीम के, आये तो नीका ।
जिसका तिसको सौंपिये, सोच क्या जी१ का ॥३९॥
३८ - ४४ में शौर्य का परिचय दे रहे है स्थूल - सूक्ष्म शरीर ईश्वर - भक्ति रूप काम में लगे तब ही अच्छे माने जाते हैं । अत: जिस ईश्वर के तन, मन, धनादि हैं, उसी को समर्पण कर दो । फिर इस जीव१ के लिये चिंता की क्या बात रह जाती है ? कुछ नहीं, उसका योगक्षेम ईश्वर ही करता है । 
(क्रमशः)

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