शनिवार, 28 जुलाई 2018

= शूरातन का अँग(२४ - ६७/६९) =

#daduji


卐 सत्यराम सा 卐
*"श्री दादू अनुभव वाणी"* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*शूरातन का अँग २४*
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दादू महा जोध मोटा बली, सो सदा हमारी भीर१ ।
सब जग रूठा क्या करे, जहां तहां रणधीर ॥६७॥
जो सबसे महान् अति बली महायोद्धा परमात्मा हैं, वे विपत्ति१ में सदा हमारी सहायता करते हैं । अत: यदि सब जगत् भी हम से रुष्ट हो जाय तो क्या करेगा ? हमारे सहायक रणधीर प्रभु तो सदा हमारी सहायतार्थ तैयार ही रहते हैं ।
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दादू रहते पहते राम जन, तिन भी मांड्या झूझ ।
साचा मुंह मोड़े नहीं, अर्थ इता ही बूझ ॥६८॥
सँसारी जन तो हम से झगड़ा करते ही रहते था किन्तु शेष बचे राम के भक्त - जन भी युद्ध करने लगे हैं । तथापि हे सज्जनो ! सच्चा भक्त किसी सँप्रदायादि की ओर मुख नहीं करता, बस, इतने में ही हमारा भावार्थ समझ जाओ ।
प्रसंग - गलता से चार साधु इस ध्येय से महाराज के पास सांभर आये था कि इन्हें अपने वैष्णव सँप्रदाय में मिला लिया जाय । दादूजी महाराज ने उनका प्रस्ताव नहीं स्वीकार किया, तब वे रुष्ट होकर लड़ने लगे था । उन्हें ही ६८ वीं साखी कही थी ।
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हरि भरोस
दादू कांधे सबल के, निर्वाहेगा और ।
आसन अपने ले चल्या, दादू निश्चल ठौर ॥६९॥
हरि का भरोसा दिखा रहे हैं, हम तो सबल ईश्वर के ही आश्रय हैं, वे ही हमको अन्त तक निभावेंगे । उन्हीं का स्वरूप ज्ञान अब हमको निश्चल - धाम रूप अपने आसन पर ले चला है ।
(क्रमशः)

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