#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*"श्री दादू अनुभव वाणी"* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
.
*शूरातन का अँग २४*
.
जे शिर सौंप्या राम को, सो शिर भया सनाथ ।
दादू दे ऊरण१ भया, जिसका तिसके हाथ ॥४०॥
जो सिर राम के समर्पण कर दिया गया, वह सनाथ हो गया । वह जिस राम का था, उसी के हाथ में देकर ऋण - उतार१ कर कृतज्ञ हो गया= भक्ति द्वारा भगवान् को प्राप्त करके अपना कर्त्तव्य पूरा कर दिया ।
जिसका है तिसकौं चढे, दादू ऊरण१ होइ ।
पहली देवे सो भला, पीछे तो सब कोइ ॥४१॥
तन - धनादि जिस ईश्वर के हैं, उसी को यदि समर्पण हो जायें तो जीव ईश्वर के ऋण१ से रहित हो जाता है । जो जीवितावस्था में ही भगवान् को समर्पण कर देता है, वही श्रेष्ठ भक्त माना जाता है, मृत्यु के समय तो सभी त्यागते हैं ।
.
सांई तेरे नाँव पर, शिर जीव करूँ कुरबान ।
तन मन तुम पर वारणे, दादू पिंड पराण ॥४२॥
हे ईश्वर ! मैं आपके नाम पर अपना अहँकार रूप शिर और जीवन बलिदान करता हूं तथा अपना तन, मन और शरीर में सँचार करने वाला प्राण भी आप पर निछावर करता हूं ।
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें