गुरुवार, 12 जुलाई 2018

= शूरातन का अँग(२४ - ४०/४२) =

#daduji

卐 सत्यराम सा 卐
*"श्री दादू अनुभव वाणी"* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*शूरातन का अँग २४*
जे शिर सौंप्या राम को, सो शिर भया सनाथ । 
दादू दे ऊरण१ भया, जिसका तिसके हाथ ॥४०॥ 
जो सिर राम के समर्पण कर दिया गया, वह सनाथ हो गया । वह जिस राम का था, उसी के हाथ में देकर ऋण - उतार१ कर कृतज्ञ हो गया= भक्ति द्वारा भगवान् को प्राप्त करके अपना कर्त्तव्य पूरा कर दिया ।
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जिसका है तिसकौं चढे, दादू ऊरण१ होइ । 
पहली देवे सो भला, पीछे तो सब कोइ ॥४१॥
तन - धनादि जिस ईश्वर के हैं, उसी को यदि समर्पण हो जायें तो जीव ईश्वर के ऋण१ से रहित हो जाता है । जो जीवितावस्था में ही भगवान् को समर्पण कर देता है, वही श्रेष्ठ भक्त माना जाता है, मृत्यु के समय तो सभी त्यागते हैं । 
सांई तेरे नाँव पर, शिर जीव करूँ कुरबान । 
तन मन तुम पर वारणे, दादू पिंड पराण ॥४२॥ 
हे ईश्वर ! मैं आपके नाम पर अपना अहँकार रूप शिर और जीवन बलिदान करता हूं तथा अपना तन, मन और शरीर में सँचार करने वाला प्राण भी आप पर निछावर करता हूं ।
(क्रमशः)

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