#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*काया सूक्ष्म कर मिलै, ऐसा कोई एक ।*
*दादू आत्म ले मिलैं, ऐसे बहुत अनेक ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi
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*लघुता का अंग ४२*
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लघु के वश दीरघ सदा, देखो पणिच१ पिनाक२ ।
रज्जब साखि यहु, मन वच कर्म उर राख ॥५॥
सदा ही बड़े छोटों के वश में रहते हैं, बड़ा धनुष छोटी प्रत्यंचा के वश में रहता है उसके खैंचे बिना नहीं चलता, यह अद्भुत साक्षी है, अत: मन वचन कर्म से लघुता हृदय में रखना चाहिये ।
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शक्ति समुद्र उलंधि कर, दीरघ गया न कोय ।
पवन पुत्र पहुँच्या तहां, जन रज्जब लघु होय ॥६॥
कोई भी बड़ा अपनी शक्ति से समुद्र को उल्लंधन करके लंका में नहीं जा सका तब पवन पुत्र हनुमान लघु बन करके ही गये थे, इससे भी लघुता श्रेष्ठ सिद्ध होती है ।
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मोटा मूल न जाव ही, राम राज दर जोय ।
रज्जब पैठे लघु तहां, तिस हि न बरजै कोय ॥७॥
देखो, राज दरबार में वृक्ष का मोटा मूल नहीं जाता किन्तु छोटा पुष्प ही प्रवेश करता है, उसे कोई भी नहीं रोकता, वैसे ही राम के दरबार में अभिमान रहित लघुता संपन्न भक्त ही जाता है ।
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मोटे डल फूटैं सही, मान मैज१ तल आय ।
रज्जब रज का क्या करैं, ऊपरि ह्वै फिर जाय ॥८॥
खेत जोतने से उखड़े हुये मिट्टी के बड़े बड़े डले तो बैलों द्वारा फेरे जाने वाले लम्बे लकड़े१ से फूट जाते हैं किन्तु वह लकड़ा लघु रज का क्या कर सकता है ? अर्थात रज के ऊपर तो फिर जाता है किन्तु उसे तोड़ नहीं सकता, यही लघुता की विशेषता है ।
(क्रमशः)
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