शनिवार, 14 जुलाई 2018

= शूरातन का अँग(२४ - ४३/४५) =

#daduji


卐 सत्यराम सा 卐
*"श्री दादू अनुभव वाणी"* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*शूरातन का अँग २४*
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शिर के साटे लीजिये, साहिबजी का नाँव ।
खेले शीश उतार कर, दादू मैं बलि जाँव ॥४३॥
अहँकार रूप शिर देकर परमात्मा का नाम चिन्तन करना चाहिये । जो सब प्रकार का अहँकार रूप शिर उतार कर परब्रह्म का साक्षात्कार रूप खेल खेलता है, उसकी हम बलिहारी जाते हैं ।
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खेले शीश उतार कर, अधर एक सौं आइ । 
दादू पावे प्रेम रस, सुख में रहे समाइ ॥४४॥ 
जो मायिक सँसार से ऊपर आकर तथा अपना अहँकार रूप शिर उतार कर साधन - संग्राम में निरंजन अद्वैत ब्रह्म से खेलता है, वह परब्रह्म के परम प्रेम - रस को प्राप्त करके परम सुख में समा कर रहता है । 
*मरण भय निवारण* 
दादू मरणे थीं तूं मत डरे, सब जग मरता जोइ । 
मिल कर मरणा राम सौं, तो कलि अजरावर१ होइ ॥४५॥ 
४५ - ५१ में मृत्यु - भय दूर कर रहे हैं, तू मरणे से मत डरे, देख तो सही, सभी जगत् के प्राणी मरते हैं, फिर तू कैसे न मरेगा ? किन्तु जो राम का साक्षात्कार करके मरता है, वह सँसार में देवताओं१ से भी श्रेष्ठ अजर - अमर१ रूप परमात्मा रूप ही हो जाता है ।
(क्रमशः)

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