#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*दादू मड़ा मसाण का, केता करै डफान ।*
*मृतक मुर्दा गोर का, बहुत करै अभिमान ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi
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*गर्व गंजन का अंग ४३*
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ज्योतिषि युक्ति न जान ही, खांड रवा रलि रेत ।
सो कीड़ी की मति लही, ढूंढ़ कणूके लेत ॥१३॥
धूलि में मिले हुये खांड के कणों को निकालने की युक्ति ज्योतिषी नहीं जानता किन्तु चींटी की बुद्धि को वह युक्ति प्राप्त है, वह खांड के कणों को निकाल लेती है ।
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कीड़ी सौं कुंज्जर उरै सोवे सूंडि समेट ।
गज गुमान तब का गया मान मकौङै मेट ॥१४॥
हाथी कीड़ी से डरता है, इसी से सूंड को समेट कर सोता है, जब हाथी के अभिमान को चींटी ने ही मिटा दिया तब ही उसका गर्व चला गया ।
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सिंधुर डरपहि सिंह सौ, ताहि सु माछर खाँहि ।
पौरुष रह्या न पंचमुख, मानुसु मरद्या माँहिं ॥१५ ॥
हाथी सिंह से डरता है, उस सिंह को मच्छर काटते हैं, तब उस सिंह का क्या बल रहा ? उसके गर्व को तो मच्छर उसके केशों में रहकर ही नष्ट कर देते हैं ।
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मोटी काया मुग्ध जीव, आदम छोटा साज ।
दीरघ दहयों दर्प हर, लघु देही शिरताज ॥१६॥
बड़े बड़े शरीरों वाले मूर्ख जीव हाथी आदि है और मनुष्य के शरीर की हस्त पादहि देह सामग्री लघु है किन्तु बड़े-बड़े शरीरों के गर्व हरने वाला है, अत: मनुष्य का छोटा शरीर होने पर भी शिरोमणी है ।
(क्रमशः)
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