बुधवार, 25 जुलाई 2018

(१)


卐 सत्यराम सा 卐
*परब्रह्म परापरं, सो मम देव निरंजनम् ।*
*निराकारं निर्मलं, तस्य दादू वन्दनम् ॥* 
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क्या ऐसा संभव है कि जब आप किसी काव्य को सीधा पढ़ें तो रामायण की कथा पढ़ी जाए और जब उसी काव्य में लिखे शब्दों को उल्टा करके पढ़े तो कृष्ण भागवत की कथा पढ़ी जाय । जी हां, कांचीपुरम के १७ वीं शती के *कवि वैंकटाध्वरी* रचित ग्रन्थ *राघवयादवीयम्* ऐसा ही एक अद्भुत-अनुपम ग्रन्थ है । इस ग्रन्थ को *‘अनुलोम-विलोम काव्य’* भी कहा जाता है ।
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पूरे ग्रन्थ में केवल ३० श्लोक हैं । इन श्लोकों को सीधे-सीधे पढते जाएँ, तो रामकथा बनती है और विपरीत(उल्टा) क्रम में पढने पर कृष्णकथा । इस प्रकार हैं तो केवल ३० श्लोक, लेकिन कृष्णकथा के भी ३० श्लोक जोड़ लिए जाएँ तो बनते हैं ६० श्लोक । पुस्तक के नाम से भी यह प्रदर्शित होता है, राघव(राम) + यादव(कृष्ण) के चरित को बताने वाली गाथा है *राघवयादवीयम्* । 
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इस अद्भुत काव्य के लेखक *श्री वेंकटाध्वरी* का जन्म कांचीपुरम के पास अरसनिपलाई में हुआ था और *श्री वेदांत देसीकन* के अनुयायी थे । वे कविता और अलंकार शास्र में निपुण थे । उनकी १४ रचनाएँ हैं, उनमें से सबसे महत्वपूर्ण *लक्ष्मीसहस्त्रम* है, इस रचना से उन्हें अपनी खोई हुई दृष्टि को वापस मिली ।
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*राघवयादवीयम्* का हिंदी अनुवाद हमें श्री मुदित मिश्र विपश्यी जी के सौजन्य से प्राप्त हुआ, मुदित जी के द्वारा इसके अंग्रेजी अनुवाद की पुस्तिका(अनुवादिका - डा. सरोजा रामानुजम, M.A., Ph.d, Siromani in Sanskrit) भी प्राप्त हुई, हार्दिक धन्यवाद मुदित जी...
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सम्पूर्ण विश्व में शायद संस्कृत ही एक ऐसी भाषा है जिसमें ऐसी कोई रचना सम्भव हो, इसमें भी शायद केवल *राघवयादवीयम्* ही ऐसी विशेषता लिये अकेला ही काव्य हो तो भी आश्चर्य न होगा.... कोटि कोटि वंदन ऐसे महापुरुषों को एवं जननी जन्मभूमि माँ भारती को .....
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The author *Sri Venkatadhvari* was born at Arasanipalai near Kancheepuram and was the follower of *Sri Vedanta desikan*. He had mastery in poetry and rhetoric. He had composed 14 works, the most important of them being Lakshmisahasram by composing which he got back his lost eyesight. 
The present work Raghavayadhaveeyam comprises of 30 verses and deals with the story of Rama and Krishna together by adopting the style of anuloma and prathiloma, that is, reading each stanza as such and in reverse order, the former telling the story of Rama while the latter narrating the story of Krishna. Hence this work actually consists of 60 slokas in all.
@Dr.Saroja Ramanujam, M.A., Ph.d, Siromani in Sanskrit.
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उदाहरण के लिये पुस्तक का पहला श्लोक है....
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(१)
*वंदेऽहं देवं तं श्रीतं रन्तारं कालं भासा यः ।*
*रामो रामाधीराप्यागो लीलामारायोध्ये वासे ॥१॥*
अर्थातः मैं उन भगवान श्रीराम के चरणों में प्रणाम करता हूं जिन्होंने अपनी पत्नी सीता के संधान में मलय और सहयाद्री की पहाड़ियों से होते हुए लंका रावण का वध किया तथा अयोध्या वापस लौट दीर्घ काल तक सीता संग वैभव विलास संग वास किया ॥१॥
I pay obeisance to Sri Rama, who traveled to the mountains of Malaya and Sahya, with his mind occupied with the thought of Sita and returned to Ayodhya and was sporting with Sita for a long time.(1)
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*सेवाध्येयो रामालाली गोप्याराधी भारामोराः ।*
*यस्साभालंकारं तारं तं श्रीतं वन्देऽहं देवम् ॥१॥*
अर्थातः मैं भगवान श्रीकृष्ण – तपस्वी व त्यागी, रुक्मिणी तथा गोपियों संग क्रीड़ारत, गोपियों के पूज्य के चरणों में प्रणाम करता हूं जिनके हृदय में मां लक्ष्मी विराजमान हैं तथा जो शुभ आभूषणों से मंडित हैं ॥१॥ 
I bow to lord Krishna, who is contemplated by penance and sacrifice, who plays with Rukmini and other consorts, who is worshipped by the Gopis, whose heart is the sporting field of Lakshmi and who is adorned with radiant ornaments.(1)
(क्रमशः)

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