बुधवार, 25 जुलाई 2018

= १८ =

卐 सत्यराम सा 卐
*दादू अपना नीका राखिये, मैं मेरा दिया बहाइ ।*
*तुझ अपने सेती काज है, मैं मेरा भावै तीधर जाइ ॥*
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साभार ~ Dhaval Parmar

*मेरे एक परिचित हैं, प्रियजन हैं, उनकी दुकान का नाम है: "दिगंबर क्लॉथ स्टोर"। मैंने उनसे कहा कि थोड़ी अकल भी तो लगाओ ! तुम्हें दिगंबर शब्द का मतलब मालूम है? दिगंबर है? दिगंबर यानी नग्न। "नंगों की कपड़ों की दुकान" ! कपड़े किसके लिए? या तो दिगंबर अलग करो, और या कपड़े की दुकान की जगह कुछ और दुकान करो !* महावीर ने कहा: अपरिग्रह, और जितना परिग्रह जैनों के पास होता है उतना किसी के पास नहीं है। यह खूब मजा हुआ। महावीर नग्न रहे और जितनी कपड़े की दुकानें जैनियों की उतनी किसी की नहीं। जैनी अक्सर कपड़े की ही दुकान करते हैं। और यह सारे लोगों के साथ यही घटना घटी है।
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*इस्लाम का अर्थ है: शांति का धर्म। इस्लाम का ही अर्थ है: शांति। और जितनी अशांति इस्लाम से फैली, किसी और से फैली? जब? देखो तब जेहाद की तैयारी चल रही है ! तलवारों पर धार रखी जा रही है। मरने-मारने के लिए आयोजन हो रहा है।*
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*जीसस ने कहा है परमात्मा प्रेम है - और ईसाइयों ने जितनी हत्याएं कीं, किसने कीं? कितने जिंदा लोगों को जला दिया। जिंदा स्त्रियों को जलाया। सारा इतिहास दो हजार वर्ष का ईसाइयों के द्वारा हत्याओं का इतिहास है।* और ईश्वर प्रेम है ! और प्रेम का परिणाम है। चकित होकर तुम जरा देखो तो, कि तुम्हारा इन धर्मों से कुछ प्रयोजन है, कुछ लेना-देना है ! 
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*हिंदू कहते हैं: जगत माया। और जितने जोर से हिंदू जगत से चिपटते हैं, शायद ही दुनिया में कोई चिपटता हो। जितने जोर से हिंदू पैसे, धन को, प्रतिष्ठा को पकड़ते हैं, उतना दुनिया में कोई भी नहीं पकड़ता।* यह मेरा रोज का अनुभव है। यहां करीब-करीब दुनिया के सारे देशों से लोग मौजूद हैं। जितनी पकड़ हिंदुओं की है, उतनी किसी की भी नहीं। क्या मामला है यह? जगत को माया कहते हैं, सब माया, मगर पकड़ते हैं जगत को इतनी जोर से कि छूटे नहीं छूटता। कुछ भी नहीं छूटता -

*धर्मों से किसी को कोई प्रयोजन नहीं है। फिर प्रयोजन क्या है?* 
*प्रयोजन है अहंकार का।* 
*हिंदू धर्म श्रेष्ठ है; क्योंकि हिंदू धर्म की आड़ में मैं श्रेष्ठ हूं, क्योंकि मैं हिंदू हूं।* 
*जैन धर्म महान है; क्योंकि उसकी आड़ में मैं महान हूं।* 
*सीधे-सीधे यह भी साहस नहीं है कहने की कि मैं महान हूं। पाखंड ऐसा गहरा हो गया है। बेईमानी खून मैं, हड्डी-मांस-मज्जा में समा गयी है। सीधे ही कहो न बात कि मैं महान हूं ! मगर तुम जानते हो कि ऐसा कहोगे तो लोग हंसेंगे, कि अरे बड़े अहंकारी हो ! तो फिर अहंकार को घूंघट में छिपाना पड़ता है। फिर अहंकार को परोक्षरूपेण बोलना पड़ता है।*
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ओशो😍दीपक बार नाम का

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