#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*दादू जब लग जीविये, सुमिरण संगति साध ।*
*दादू साधू राम बिन, दूजा सब अपराध ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi
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*साधु मिलाप मङ्गल उत्साह का अंग ३९*
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साधु समागम सु सुख को, कहिबे को समरत्थ ।
रज्जब सब उनमान१ की, जो कहिये कवि कत्थ ॥१३॥
संत समागम के सुन्दर सुख का कथन करने में कौन समर्थ है ? अर्थात कोई भी नहीं, कवि जन कथा कहते हैं, वे तो सभी सीमित ही होते हैं ।
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जब दीवै दीवा द्रसे१, तब तल के तम नाँहिं ।
यूं साधु साधु मिलत, अगम अशंका जाँहिं ॥१४॥
जब एक दीपक के सामने दूसरा दीपक रखा जाता है तब उन दोनों के नीचे के अधेरे नहीं दिखाई१ देते वैसे ही सन्त मिलते हैं तब अगम ब्रह्म सम्बन्धी दोनों की आशंकायें हृदय से चली जाती हैं ।
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यार१ यार सोहै सही, ज्यों हाथ हिं धोवे हाथ ।
मुख मोहन परसन२ चलै, साफ होय करि साथ ॥१५॥
एक हाथ से दूसरा हाथ मिलता है तब दोनों साथ ही धोये जाते हैं, वैसे ही साधु१ से साधु मिलते हैं तब मुख से विश्व वे मोहन परमात्मा सम्बन्धी प्रश्नोत्तर२ चलते हैं, जिससे दोनों के हृदय साफ होकर यर्थात रूप से सुशोभित होते हैं ।
(क्रमशः)
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