बुधवार, 4 जुलाई 2018

= शूरातन का अँग(२४ - २५/७) =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*"श्री दादू अनुभव वाणी"* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*शूरातन का अँग २४* 
*शूरवीर - कायर* 
जीवों का सँशय पड्या, को काको तारे । 
दादू सोई शूरवां, जे आप उबारे ॥२५॥ 
२५ - ३१ में शूर और कायर का परिचय दे रहे हैं, सब जीवों का उद्धार का साधन भी सँशय में पड़ा है अर्थात् जो उद्धार का साधन करते हैं, उनमें सँशय रहता है कि इससे हमारा उद्धार होगा या नहीं ? फिर कौन किसका उद्धार कर सकता है ? अत: वही शूरवीर है, जो प्रथम अहँकारादि से अपना उद्धार करता है । 
जे निकसे सँसार तैं, सांई की दिशि धाइ ।
जे कबहूँ दादू बाहुड़े, तो पीछे मार्या जाइ ॥२६॥
जो परमात्मा की भक्ति करने साँसारिक भोग - वासनाओं को त्याग कर निकल भी जाता है, उसकी वृत्ति भी यदि संग - दोष से पुन: विषयों में आयेगी तो कामादिक शत्रुओं के द्वारा वह फिर भी मारा जायेगा । सँसार में लोक - निन्दा के बोलों से भी मारा जायगा ।
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दादू कोई पीछे हेला२ जनि३ करे४, आगे हेला१ आव५ । 
आगे एक अनूप है, नहिं पीछे का भाव६॥२७॥ 
जैसे वीर आगे युद्ध - भूमि में वीरों के बुलावे१ पर ही आता५ है, पीछे से कोई कायर आवाज२ दे कि शत्रु बलवान् है, लौट आओ, उसको नहीं३ स्वीकार करता४ । वैसे ही साधक अन्तर्मुख वृत्ति होने पर आने वाली अनाहत ध्वनि की ओर ही बढ़ता जाता है, कोई विषय - स्मृति रूप आवाज आती है तो उसकी ओर वृत्ति को नहीं जाने देता, कारण, आगे उसे अद्वैत अनुपम सुख प्राप्त होता है । अत: पीछे के क्षणिक विषय - सुख की भावना६ उसमें नहीं रहती । 
(क्रमशः)

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