शुक्रवार, 13 जुलाई 2018

= १९५ =


卐 सत्यराम सा 卐 
*साधु शिरोमणि शोध ले, नदी पूर पर आइ ।*
*संजीवनि साम्हा चढै, दूजा बहिया जाइ ॥* 
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साभार : मुदित मिश्र विपश्यी ~ षोडश संस्काराः

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पुष्टिमार्ग के प्रवर्तक वैश्वानरावतार आचार्य श्री वल्लभाचार्यजी दक्षिण-भारत की यात्रा करते हुए ताम्रपर्णी नदी के तट पर पधारे, वहाँ आपश्री ने छोंकर-वृक्ष के नीचे मुकाम किया । दूसरे दिन सुबह आपश्री श्रीमद् भागवतजी का पारायण कर रहै थे, तब उनके पास एक ब्राह्मण आया, ब्राह्मण ने विनम्र होकर श्री वल्लभ को प्रणाम किये । 
श्री वल्लभ ने पूछा - हे साधो ! आप कौन हो ? क्यों आएँ हो ? अपनी परिचय देते हुए ब्राह्मण ने कहा - मेरा नाम पद्मनाभ है, यहाँ से दो गज दूर पालमकोटा नामक एक बड़ा नगर हैं, यह इस प्रदेश की राजधानी है । वहाँ के राजा का मैं राजपुरोहित हूँ । बाद में आने का कारण देते हुए कह रहा हैं कि महाराज ! हमारे राजा कालज्वर से बहुत पीड़ित हैं । अनेक उपचार करने पर भी कोई परिणाम नहीं मीला । लगता है कि यह ज्वर राजा का अंतिम-काल बनकर आया है । 
एक तांत्रिक ने इस पीड़ा में से मुक्त होने के लिए उपाय दिया हैं । तांत्रिक ने कालपुरुष की प्रतिमा तैयार कर रखी है । और कहता हैं कि यदि कोई ब्राह्मण इस प्रतिमा का दान स्वी तो राजा का रोग शमन हो जायगा । परंतु दान स्वीकार करनेवाले का जीव नहीं रहे #द्रव्यलोभ से अनेक ब्राह्मण दान स्वीकार करने आए, परंतु प्रतिमा में से कालपुरुष प्रकट होकर दान लेनेवाले के सामने एक अँगुली ऊँची करके दीखाता है, भयंकर हुँकार करते हुए उनकी सामने देखता हैं इसलिए भय से ब्राह्मण बिना दान लिए भाग जाते हैं । 
अब राजाने तांत्रिक के कहने पर वह प्रतिमा का दान स्वीकार्य करने के लिए मुझे आज्ञा की है । महाराज ! मुझे उचित दान लेकर मरना नहीं हैं । आप ब्राह्मण प्रतिपालक हो । वैष्णवाचार्य हो । धर्म के रक्षक हो । मेरा और राजा का जीव बचाकर कृपा करें । इतना कहते हुए पद्मनाभ बहुत रोने लगा । श्रीवल्लभ को पद्मनाभ पर दया आई । आपश्री ने कहा पद्मनाभ ! प्रभु सब शुभ करैंगे । आप प्रभु पर श्रद्धा रखें । प्रभु की कृपा से आपका और राजा का कुशल मंगल होगा । चिंता न करें । श्री वल्लभ राजपुरोहित के साथ राजसभा में गए । 
वहाँ श्री आचार्यजी का सब ने स्वागत किया । श्री वल्लभ ने कालपुरुष का दान लेने के लिए हाथ में जल लेकर संकल्प किया । वहाँ ही प्रतिमा में से कालपुरुष प्रकट हुआ । उसने श्रीवल्लभ के सामने एक अँगुली दीखाईं । तब श्री वल्लभ ने कालपुरुष के सामने अपनी तीन अँगुलीयाँ ऊँची करते हुई दिखाई । परिणाम स्वरूप कालपुरुष श्री वल्लभ के सामने नतमस्तक होकर प्रतिमा में समा गया और राजा का बुखार उतर गया । राजा स्वस्थ हुए । श्री वल्लभ ने आज्ञा की - हे राजन् ! इस प्रतिमा के टुकडै कर ब्राह्मणों को बाँट दो । मैं किसी का दान स्वीकारता नहीं हूँ । राजाने सेवक द्वारा प्रतिमा के टूकडै करवाकर वहाँ उपस्थित सभी ब्राह्मणों को बाँट दिए । 
रहस्यार्थ - कालपुरुष ब्राह्मणों को एक अँगुली दिखाता रहता था तब ब्राह्मणों भयभीत होकर भागने लगते थे परंतु श्री वल्लभ ने तीन अँगुली दिखा कर कालपुरुष को रहस्यमय उत्तर दिया यह उत्तर है - आप तो एक अँगुली दर्शाते हुए सावधान कर रहे थे कि एक वेला की संध्योपासना आप - ब्राह्मण नित्य करते हो ? यदि आप एक वेला की सन्ध्योपासना करते हो तो आप यह दान स्वीकार कर सकते हो, वरन् में आप का काल बनकर मृत्यु दूँगा परंतु आचार्य श्री वल्लभ ने अपनी तीन अँगुलीयाँ दर्शाते हुए बताया कि ब्राह्मणों के लिए तीन वेला की सन्ध्योपासना अनिवार्य है वह मैं नित्य करता हूँ - 
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#ब्राह्मण की नित्य सन्ध्योपासना रूपी तप से #कालपुरुष भी नतमस्तक हुए । 
#आचार्य_श्री_महाप्रभुजी_की_जय

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