बुधवार, 18 जुलाई 2018

= शूरातन का अँग(२४ - ५२/५४) =


#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*"श्री दादू अनुभव वाणी"* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*शूरातन का अँग २४*
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*शूरातन* 
दादू माँहीं मन सौं झूझ कर, ऐसा शूरा वीर । 
इन्द्रिय अरि दल भान सब, यों कलि हुआ कबीर ॥५२॥ 
५२ - ५५ में शौर्य का परिचय दे रहे हैं शरीर के भीतर मन से युद्ध करके उसमें रहने वाले कामादि रूप सब शत्रु - दल को नष्ट करके तथा इन्द्रियों को जीत कर निर्भय हुआ है, ऐसा साधक ही शूर कहलाता है । ऐसे ही वीर कलियुग में कबीर हुये हैं । 
सांई कारण शीश दे, तन मन सकल शरीर । 
दादू प्राणी पँच दे, यों हरि मिल्या कबीर ॥५३॥ 
परमात्मा की प्राप्ति के लिये अपना अहँकार रूप सिर उतार कर, मन और पाँचों ज्ञानेन्द्रियों को जो प्राणी परमात्मा के भजन में लगाता है, वही परमात्मा को प्राप्त होता है । इसी प्रकार कबीर जी हरि को प्राप्त हुये हैं ।
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सबै कसौटी शिर सहै, सेवक सांई काज ।
दादू जीवन क्यों तजे, भाजे हरि को लाज ॥५४॥
साधक परमात्मा की प्राप्ति के लिये सभी कठौर परीक्षा रूप कष्टों को सहन करे किन्तु अपनी जीवन रूप भक्ति को किसी प्रकार भी न त्यागे । कारण, भक्ति को त्याग कर विषयों की ओर भागने से हरि को लाज लगती है । लोग कहते हैं देखो, हरि - भक्त होकर भी विषयों में गिर गया ।
(क्रमशः)

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