सोमवार, 9 जुलाई 2018

= शूरातन का अँग(२४ - ३४/३६) =

#daduji


卐 सत्यराम सा 卐
*"श्री दादू अनुभव वाणी"* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*शूरातन का अँग २४*
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पँच चोर चितवत रहें, माया मोह विष झाल१ ।
चेतन पहरे आपने, कर गह खड़्ग संभाल ॥३४॥
पँच ज्ञानेन्द्रिय रूप चोर देखते ही रहते हैं, किंचित् प्रमाद होते ही भगवदाकार वृत्ति को चुरा कर मायिक मोह और विषय रूप विष की ज्वाला१ में डालकर व्यथित करते हैं । अत: वैराग्य रूप तलवार मन रूपी हाथ में लेकर अपने पहरे पर सावधान रहते हुये वृत्ति की निरन्तर संभाल पूर्वक रक्षा करनी चाहिये ।
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काया कबज१ कमान२ कर, सार शब्द कर तीर । 
दादू यहु शर साँध कर, मारै मोटे मीर३॥३५॥ 
सूक्ष्म शरीर को सँयम में रखना रूप धनुष२ धारण१ करे तथा सार रूप परब्रह्म की प्राप्ति के साधनों के सहायक सद्गुरु के शब्द रूप बाणों से अन्त:करण - तरुणीर भरकर तैयार रहे, फिर जो भी आसुरी - गुणों का सरदार३ वृत्ति के सामने आये, उसे मारने योग्य बाण को सँधान करके मार दे अर्थात् क्रोध उत्पन्न हो तो क्षमा - प्रधान शब्द विचार से नष्ट कर दे । इसी प्रकार सद्गुरु के शब्द - बाणों द्वारा सब को मारे । 
काया कठिन कमान है, खांचे विरला कोइ । 
मारे पँचों मृगला, दादू शूरा सोइ ॥३६॥ 
सूक्ष्म - शरीर को सँयम में रखना रूप धनुष धारण करना सर्व साधारण के लिये कठिन है । कोई विरला साधक ही सद्गुरु शब्द - बाण उस पर रखकर खैंचता है और जो उसके द्वारा पँच - ज्ञानेन्द्रिय रूप मृगों को मारता है=विषयासक्ति से रहित करता है, वही सच्चा शूर माना जाता है ।
(क्रमशः)

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