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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविध्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविध्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= ४. राग कानड़ो =*
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(७)
*ज्ञान तहां जहां द्वंद्व न कोई ।*
*बाद विवाद नहीं काहू सौं गरक ज्ञान मैं ज्ञानी सोई ॥(टेक)*
ज्ञान की स्थिति वहीँ हो सकती है, जहाँ(जिसके मन में) कोई द्वन्द्व न हो । जो सदाज्ञान में मुदित होकर एकान्त में पड़ा रहे ॥टेक॥
*भेदाभेद दृष्टि नहिं जाकै हर्ष शोक उपजै नहिं दोई ।*
*समता भाव भयौ उर अंतर सार लियौ सब ग्रंथ बिलोई ॥१॥*
जिसके मन में सांसारिक भेद या अभेद का विचार न हो, जिस के मन में हर्ष या शोक कुछ भी उत्पन्न न होता हो । जिसके चित्त में संसार के प्रति समता का भाव बना रहे - वही ज्ञानी है - ऐसा हमने समस्त शास्त्रों की समीक्षा करने के बाद समझ लिया है ॥१॥
*स्वर्ग नरक संशय कछु नांहीं मन की सकल बासना धोई ।*
*वाही कै तुम अनुभव जानौ सुन्दर उहै ब्रह्ममय होई ॥२॥*
जिसके मन में किसी भी प्रकार का सन्देह या किसी भी प्रकार की वासना न हो, उसी को तुम भी अपने अनुभव से जान लो कि वही ब्रह्मज्ञानी है ॥२॥
(क्रमशः)
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