बुधवार, 25 जुलाई 2018

= सुन्दर पदावली(४. राग कानड़ो २) =

#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥ 
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली* 
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविध्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविध्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
*= ४. राग कानड़ो =*
(२) 
*संत सुखी दुख मय संसारा ।*
*संत भजन करि सदा सुखारे जगत दुखी गृह कै बिवहारा ॥(टेक)* 
हमारा यही मानना है कि सन्त ही अपने स्पष्ट(सत्य) व्यवहार के कारण यहाँ सुखी हैं, संसार को तो हम निरन्तर किसी न किसी दुःख से घिरा हुआ ही देखते हैं । क्योंकि सन्तजन निरन्तर भगवद्भजन करते हुए सुखी रहते हैं, जबकि यह जगत् अपने घरेलू झगड़ों में ही आबद्ध रहता है ॥टेक॥ 
*संतनि कै हरि नाम सकल निधि नाम सजीवनि नाम आधारा ।* 
*जगत अनेक उपाइ कष्ट करि उदर पूरना करै दुखारा ॥* 
सन्तों ले लिये एकमात्र हरिनाम स्मरण ही खजाना(कोष) है, वही इनका जीवन रक्षक है तथा वही इनका आश्रयस्थल है । जबकि जगत् अपनी उदरपूर्ति हेतु दिन रात कष्टपूर्वक विविध उपाय खोजता रहता है ॥१॥ 
*संतनि कौं चिंता कछु नाहीं जगत सोच करि करि मुख कारा ।* 
*सुन्दरदास संत हरि सनमुख जगत बिमुख पचि मरै गंवारा ॥२॥* 
सन्तों को कोई व्यवहारिक चिन्ता नहीं सताती; जबकि इसके विपरीत जगत् विविध चिन्ता करता हुआ उनहीं में डूबता उतरता रहता है । महाराज श्री सुन्दरदासजी कहते हैं - इसमें प्रधान कारण यही है कि सन्त सदा अपने प्रत्येक कार्य की सिद्धि हेतु एकमात्र भगवान् पर आश्रित रहते हैं, परन्तु सांसारिक जन स्वकार्य सिद्धि हेतु नये नये उपाय खोजने में ही स्वयं दुःखी रहते हैं ॥२॥ 
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें