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卐 सत्यराम सा 卐
*"श्री दादू अनुभव वाणी"* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*शूरातन का अँग २४*
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पीछे को पग ना भरे, आगे को पग देइ ।
दादू यहु मत शूर का, अगम ठौर को लेइ ॥२८॥
वीर घर की ओर पैर नहीं रखता, रणक्षेत्र की ओर ही पैर बढ़ाता है और युद्ध में मर के सर्व साधारण से अगम स्वर्ग - धाम को प्राप्त करता है, यही वीर का मत है । वैसे ही साधक विषयों की ओर वृत्ति नहीं जाने देता । ब्रह्माकार वृत्ति की ही वृद्धि करता है और ब्रह्म रूप अगम - धाम को प्राप्त होता है । यही शूरवीर साधक का मत है ।
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आगा चल पीछा फिरे, ताका मुंह मा१ दीठ२ ।
दादू देखे दोइ दल, भागे देकर पीठ ॥२९॥
जो शूर वीर आगे रणभूमि में जाकर, भय से रणभूमि से वापस लौट आता है अथवा जो दोनों ओर के सैन्य दलों को भयानक लड़ते देखकर बिना विजय किये ही भयभीतावस्था में पीठ दिखाकर भाग जाता है, ऐसे कायर का मुख देखने२ योग्य नहीं१ । वैसे ही साधक साधन में आगे बढ़कर, प्रतिष्ठज्ञा वो विषयों के फँद में आ जाता है, वह अपने कर्म - बीज को ज्ञानाग्नि द्वारा नहीं भून सकता, उसके अदृष्ट तथा वासना रूप दोनों दलों को पुन: देखता है=जन्म - मरण में आता है । अत: वह पतन की ओर आने से दर्शनीय नहीं ।
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दादू मरणा मांड१ कर, रहे नहीं ल्यौ लाइ ।
कायर भाजे जीव ले, आ२ रण३ छाड़े जाइ ॥३०॥
कायर रणभूमि में मरने की तैयारी१ करके भी रुकता नहीं । रण में आया२ हुआ भी, भय से रण को छोड़, अपना जीव लेकर भागता है और घर को आ जाता है । वैसे ही विषयी जीवन अहँकारादि के नष्ट करने की तैयारी१ करके भी परब्रह्म में वृत्ति लगाकर सँयम से नहीं रह सकता । साधन३ छोड़कर विषयों में ही आसक्त होता है । अरण्य को त्याग गृहस्थाश्रम में फंसता है ।
(क्रमशः)
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