सोमवार, 30 जुलाई 2018

= २८ =


卐 सत्यराम सा 卐
*धन्य धन्य तूँ सिरजनहार, तेरा कोई न पावै पार ।*
*धन्य धन्य तूँ निरंजन देव, दादू तेरा लखै न भेव ॥* 
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साभार ~ Narayan Joshi

*॥ समस्त जी के प्रति कृज्ञता से भरें.. ॥*

मुझे भोजन उपलब्ध हुआ है, यह बहुत बड़ी धन्यता है। मुझे एक दिन और जीने को मिला है, यह बहुत बड़ा ग्रेटिटयूड है। आज सुबह मैं फिर जीवित उठ आया हूं। आज फिर सूरज ने रोशनी की है। आज फिर चांद मुझे देखने को मिलेगा। आज मैं फिर जीवित हूं। जरूरी नहीं था कि मैं आज जीवित होता। *आज मैं कब में भी हो सकता था, लेकिन आज मुझे फिर जीवन मिला है। और मेरे द्वारा कुछ भी कमाई नहीं की गई है, जीवन पाने को। जीवन मुझे मुफ्त में मिला है। इसके लिए कम से कम धन्यवाद का, मन में अनुग्रह का, ग्रेटिटयूड का कोई भाव होना चाहिए।*
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भोजन हम कर रहे हैं, पानी हम पी रहे हैं, श्वास हम ले रहे हैं, इस सबके प्रति अनुग्रह का बोध होना चाहिए। *समस्त जीवन के प्रति, समस्त जगत के प्रति, समस्त सृष्टि के प्रति, समस्त प्रकृति के प्रति, परमात्मा के प्रति एक अनुग्रह का बोध होना चाहिए कि मुझे एक दिन और जीवन का मिला है।* मुझे एक दिन और भोजन मिला है। मैंने एक दिन और सूरज देखा। मैंने आज और फूल खिले देखे। आज मैं और जीवित था।
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रवींद्रनाथ की मृत्यु आई, उसके दो दिन पहले उन्होंने कहा—उन्होंने कहा कि हे परमात्मा, मैं कितना अनुगृहीत हूं कैसे कहूं ! *तूने मुझे जीवन दिया, जिसे जीवन पाने की कोई भी पात्रता न थी। तूने मुझे श्वासें दीं, जिसके श्वास पाने का कोई अधिकार न था। तूने मुझे सौंदर्य के, आनंद के अनुभव दिए, जिनके लिए मैंने कोई भी कमाई न की थी। तो मैं धन्य रहा हूं और तेरे बोझ से, अनुग्रह के बोझ से दब गया हूं।* 
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और अगर तेरे इस जीवन में मैंने कोई दुख पाया हो, कोई पीड़ा पाई हो, कोई चिंता पाई हो, तो वह मेरा कसूर रहा होगा। तेरा जीवन तो बहुत—बहुत आनंदपूर्ण था। वह मेरी कोई भूल रही होगी। तो मैं नहीं कहता हूं तुझसे कि मुझे मुक्ति दे दे जीवन से। *अगर तू मुझे फिर से योग्य समझे तो बार—बार मुझे जीवन में भेज देना। तेरा जीवन अत्यंत आनंदपूर्ण था और मैं अनुगृहीत हूं। यह जो भाव है, यह जो कृतज्ञता का भाव है, वह समस्त जीवन के साथ संयुक्त होना चाहिए।*
ओशो

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