सोमवार, 6 अगस्त 2018

(१४)

卐 सत्यराम सा 卐
*समर्थ सोई सकल भरपूर,*
*बाहर भीतर नेड़ा न दूर ।*
*अकल आप कलै नहीं कोई,*
*सब घट रह्यो निरंजन होई ॥*
(श्री दादूवाणी ~ पद. ३९०)
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*राघवयादवीयम्* ~ लेखक *श्री वेंकटाध्वरी*
साभार सौजन्य ~ मुदित मिश्र विपश्यी(हिंदी/अंग्रेजी अनुवाद)
अंग्रेजी अनुवाद ~ डा. सरोजा रामानुजम, M.A., Ph.d, Siromani in Sanskrit 
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(१४)
*श्री रामलीला*(अनुलोम)
यातुराजिदभाभारं द्यां वमारुतगन्धगम् ।
सोगमारपदं यक्षतुंगाभोनघयात्रया ॥१४॥
असंख्य राक्षसों का नाश अपने तेजप्रताप से करनेवाले(राम), स्वर्गतुल्य सुगन्धित पवन संचारित स्थल(चित्रकूट) पर यक्षराज कुबेर तुल्य वैभव व आभा संग लिए पहुँचे ॥१४॥
Rama, with splendour like Kubera, with faultless gait, reached the chitrakoota hill, after the hosts of demons being subdued. The heavenly place was shining glorious with the soft breeze.(14)
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(१४) 
*श्री कृष्णलीला*(विलोम) 
यात्रयाघनभोगातुं क्षयदं परमागसः ।
गन्धगंतरुमावद्यं रंभाभादजिरा तु या ॥१४॥
मेघवर्ण के श्रीकृष्ण, सत्यभामा को घोर अन्याय से शांत करने हेतु, अप्सराओं से शोभायमान, रम्भा जैसी सुंदरियों से चमकते आंगन, स्वर्ग को गए ताकि वे सुगन्धित पारिजात वृक्ष तक पहुँच सकें ॥१४॥
Krishna with cloud color complexion, in order to rectify the wrong done to Sathyabhama, went to heaven which was beautified by apsara damsels like Rambha, to reach the parijatha tree of divine fragrance.(14)
(क्रमशः)

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