#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*सब तज गुण आकार के, निश्चल मन ल्यौ लाइ ।*
*आत्म चेतन प्रेम रस, दादू रहै समाइ ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ Tapasvi Ram Gopal
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*पीव पिछाण का अंग ४७*
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जड़ जाइगहैं१ चेतन नहीं, समझे समझो वीर२ ।
ज्यों सुरही३ थणहुं बिना, सब ठाहर नहिं क्षीर४ ॥४९॥
जैसे गो३ के स्तनों को छोड़कर सब अंगों में दूध४ नहीं होता है, हे समझे हुये भाई२ ! वैसे ही समझो जड़ स्थान१ में चेतन नहीं होता अर्थात इन्द्रिय अन्त:करणादि जड़ पदार्थ चेतन नहीं होता ।
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देखो अविगत१ उदधि तैं, अवतार सु नाले नीर ।
रज्जब रत्न न पाइये, मुक्ति न मुक्ता वीर ॥५०॥
हे भाई२ ! परब्रह्म१ समुद्र के समान है, अवतार नदी नालों के जल के समान है, जैसे नदी नालों के जल में मोती नहीं मिलते, वैसे ही अवतारों के ज्ञान से मुक्ति नहीं मिलती ।
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सांई सोवन१ मेरु सौं, अवतार नापिगा२ धार ।
सिद्धि स्वभूकी३ तिनहुं में, रज धोवे संसार ॥५१॥
सुवर्ण१ के पर्वत सुमेरु से नदियों२ की धाराएं चली है उनकी रज धोकर सांसारिक प्राणी सुर्वण निकालते हैं, वैसे ही परब्रह्म से अवतार होते हैं, उन अवतारों में जो भी सिद्धि शक्ति है वह परब्रह्म३ की ही है, उनकी उपासना करके सांसारिक प्राणी अपनी पाप रूप रज धोते हैं ।
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एक अविगत ने किये, पैदा प्राण अनेक ।
रज्जब जीवहु जोर घट१, सब तैं होय न एक ॥५२॥
परमात्मा और जीव का भेद बता रहे हैं - एक परमात्मा ने अनेक प्राणी उत्पन्न किये हैं किन्तु जीव की शक्ति कम१ है, सब जीवों की शक्ति से भी एक परमात्मा उत्पन्न नहीं हो सकता, अत: परमात्मा सर्व शक्ति संपन्न है और जीव अल्प शक्ति वाला है ।
(क्रमशः)
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