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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= १६. राग सोरठ (९/२)=*
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*ब्रह्मा बिष्णु महेस बिचारा,*
*उहां लग जान न पाया हो ।*
*बाजी मांहि बीचि ही अटके,*
*मोहि लिये सब माया हो ॥३॥*
*तहां गये गोरक्ष भरथरी,*
*जहां घांम नहिं छाया हो ।*
*तहां कबीर गुरु दादू पहुंचे,*
*सुन्दर उहिं दिशि धाया हो ॥४॥*
ये ब्रह्मा, विष्णु महेश तो साधारण देवता हैं । वे भी हमारे उस उपास्य देव को नहीं समझ पाये । वे भी उसकी उपासना करते हुए बीच में ही अटक(फँस) गये तथा माया मोह में फँस गये ॥३॥
हमारे उस उपास्य देव के घर में न मोह का ताप है और न माया की छाया । वहाँ(उस निराकार तक) तो कबीर एवं श्रीदादूदयाल जैसे सन्त ही पहुँच पाये हैं । यह गरीब सुन्दरदास उसी निराकार उपास्य देव की ओर दौड़ लगा रहा है कि किसी प्रकार उसे प्राप्त कर ले ॥४॥
(क्रमशः)
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