#daduji
॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
.
*निगुणा का अँग ३३*
.
सद्गुरु दीया रामधन, रहे सुबुद्धि बताइ ।
मनसा वाचा कर्मणा, बिलसे वितड़े खाइ ॥२७॥
सद्गुरु ने सभी को रामस्वरूप सम्बन्धी ज्ञान - धन दिया है, किन्तु जो कृतज्ञ साधक अपनी श्रेष्ठ बुद्धि का परिचय देता है अर्थात् मनन द्वारा उसे स्मरण रखता है, उसी में वह ज्ञान - धन रहता है और वही बुद्धि द्वारा विचार से उसका आनन्द लेता है । वाणी से उसे वितरण करता है और समता पूर्वक क्रिया द्वारा परम सुख का उपभोग करता है, अन्य कृघ्न आदि को यह लाभ नहीं होता है ।
.
कीया कृत मेटै नहीं, गुण हीं माँहिं समाइ ।
दादू बधै अनन्त धन, कबहूं कदे न जाइ ॥२८॥
इति निगुणा का अँग समाप्त: ॥३३॥ सा - २४०२॥
जो कृतज्ञ साधक अपने पर किये हुये सद्गुरु के ज्ञानोपदेश रूप उपकार को भूलता नहीं, उसमें अपने मन को लगा कर, परोपकारी बनकर स्वयँ उपदेश करता है, तब उसके ज्ञान - धन की अपार वृद्धि होती है और कभी भी किसी भी अवस्था में वह ज्ञान - धन नष्ट नहीं होता ।
इति श्री दादू गिरार्थ प्रकाशिका निगुणा का अँग समाप्त: ॥३३॥
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें