मंगलवार, 12 मार्च 2019

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🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*बिन ही ठाहर आसण पूरे, बिन कर बैन बजावै ।*
*बिन ही पावों नाचै निशिदिन, बिन जिभ्या गुण गावै ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ पद्यांश. २१०)*
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'समस्त तरह की लहरें स्थूल या सूक्ष्म विसर्जित हो जातीं। ऐसा पुरुष न तो कुछ जानता, न कुछ कहता न कुछ करता।'
कि विजानाति किं बूते च किं करोति।
और यही परम ज्ञान की दशा है, जहां कुछ भी जाना नहीं जाता। क्योंकि न जानने वाला है, न कुछ जाना जाने वाला है। यह विरोधाभासी वक्तव्य है ! यही परम ज्ञान की दशा है।
किं विजानाति किं बूते......।
न कुछ कहा जाता, न कुछ कहा जा सकता।
किं करोति.....
करने को भी कुछ बचता नहीं। जो होता है होता है। जो हो रहा है होता रहता है।
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कहते हैं, बुद्ध बयालीस साल तक लोगों को समझाते रहे। गांव—गांव जाते रहे। इतना बोले, सुबह से सांझ तक समझाते रहे। और एक दिन आनंद कुछ पूछता था तो आनंद से उन्होंने कहा कि आनंद तुझे पता है, बयालीस साल से मैं एक शब्द भी नहीं बोला हूं?
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आनंद ने कहा कि प्रभु किसी और को आप कहते तो शायद मान भी लेता। मैं बयालीस साल से आपके साथ फिरता हूं मैं आपकी छाया की तरह हूं मुझसे आप कह रहे हैं कि आप कुछ नहीं बोले ! सुबह से सांझ तक आप लोगों को समझाते हैं।
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भगवान बुद्ध ने कहा - आनंद, फिर भी मैं कहता हूं, तू स्मरण रखना, कि बयालीस साल से मैं एक शब्द नहीं बोला। आनंद ने कहा : गांव—गांव भटकते हैं, घर—घर, द्वार—द्वार पर दस्तक देते हैं। तो बुद्ध ने कहा : आनंद, मैं फिर तुझसे कहता हूं कि बयालीस साल से मैं कहीं आया—गया नहीं। आनंद ने कहा, आप शायद मजाक कर रहे हैं। मुझे छेड़ें मत।
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आनंद समझ नहीं पाया। यह तो आनंद जब स्वयं बुद्ध के विसर्जन के बाद, बुद्ध के निर्वाण के बाद ज्ञान को उपलब्ध हुआ तब समझा, तब रोया। तब रोते समय उसने कहा कि हे प्रभु, तुमने कितना समझाया और मैं न समझा। आज मैं जानता हूं कि बयालीस साल तक न तुम कहीं गये, न आये। और आज मैं जानता हूं कि बयालीस साल तक तुमने एक शब्द नहीं बोला।
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किं विजानाति किं बूते किं करोति।
तुमने कुछ भी नहीं किया।
जब अहंकार चला जाता है तो सब क्रियाएं चली जाती हैं। क्रिया मात्र अहंकार की है। जानना भी क्रिया है, बोलना भी क्रिया है, चलना भी क्रिया है, करना भी क्रिया है। सब चला जाता है।
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अड़चन होगी, अगर ये कहा जाए कि भगवान बुद्ध एक शब्द भी नहीं बोले। अड़चन भी समझ में आती है क्योंकि सभी ने अब तक जो भी किया है वह 'किया' है; जीवन में कुछ होने नहीं दिया।
भगवान बुद्ध जो शब्द बोले रहे हैं; इन शब्दों को वे बोल नहीं रहें है।
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जैसे वृक्षों पर पत्ते लगते हैं और वृक्षों पर फूल लगते हैं, ऐसे ये शब्द भी लग रहे हैं। इन्हें कोई लगा नहीं रहा। इनके पीछे कोई चेष्टा नहीं है, कोई प्रयास नहीं है, कोई आग्रह नहीं है। ये न लगें तो कुछ फर्क न पड़ेगा। ये लगते हैं तो कुछ फर्क नहीं पड़ता है। भगवान बुद्ध अचानक बोलते—बोलते अगर बीच में ही मैं रुक जाएं तो कुछ फर्क न पड़ेगा। अगर शब्द न आया तो न आया।

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