मंगलवार, 12 मार्च 2019

= सुन्दर पदावली(१६.राग सोरठ - १४/२) =

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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥ 
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली* 
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
*= १६. राग सोरठ (१४/२)=*
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*निर्मल मैले मैले मैले,*
*जब लग मनहिं बिकारा ।* 
*निर्मल निर्मल मैले निर्मल,*
*गलित भये गुन सारा ॥३॥* 
*उत्तम मध्यम मध्यम मध्यम,*
*जब लग बस्तु न जांनी ।* 
*उत्तम उत्तम मध्यम उत्तम,*
*आतम दृष्टि पिछांनी ॥४॥* 
*साँचा झूठा झूठा झूठा,*
*जब लग आन पुकारै ।* 
*साँचा साँचा झूठा साँचा,*
*बांणी ब्रह्म उचारै ॥५॥* 
जब तक मन का पापों से संपर्क है तब तक वह लाख बार स्नान कर के भी मलिन ही कहलायगा । इसके विपरीत, यदि उसने हरिभजन में मन लगा लिया है तो समझो कि उसका चित्त शुद्ध होने से वह भी सर्वथा शुद्ध ही है ॥३॥ 
जब तक किसी ने सूक्ष्म तत्त्व का साक्षात्कार नहीं किया तब तक वह लोक में लाख प्रकार से उत्तम माना जाने पर भी आध्यात्मिक दृष्टि से मध्यम ही कहा जायगा । हाँ, यदि उसने उस सूक्ष्म(आत्मदृष्टि) को प्रत्यक्ष कर लिया है तो वह वहाँ ‘उत्तम’ कहलाने का अधिकारी है ॥४॥ 
जब तक कोई साधक अन्य देवता का चिन्तन करता है तब तक वह ‘मिथ्याचिन्तक’ ही कहा जायगा । विद्धवान् तो उसको उत्तम(सत्य) चिन्तक मानेंगे जब वह ब्रह्म चिन्तन करेगा । ब्रह्म के अतिरिक्त किसी अन्य देवता का चिन्तक ‘उत्तम’ चिन्तक कैसे हो सकता है ? ॥५॥
(क्रमशः)

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