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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= १६. राग सोरठ (११/१)=*
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*उस, सत गुरु की बलिहारी हो ।*
*बंधन काटि किये जिनि मुकता,*
*अरु सब बिपति निवारी हो ॥(टेक)*
*बानी सुनत परम सुष पायौ,*
*दुरमति गई हमारी हो ।*
*भरम करम के संसै षोले,*
*दिये कपाट उघारी हो ॥१॥*
*माया ब्रह्म भेद संमुझायौ,*
*सो हम लियौ बिचारी हो ।*
*आदि पुरुष अभि अंतरि राषे,*
*डांइनि दूरि बिडारी हो ॥२॥*
मैं उस सद्गुरु की बलिहारी जाता हूँ(कृतज्ञता प्रकट करता हूँ) कि उनने मुझको सदुपदेश कर मेरे सभी सांसारिक बंधन काट दिये । अब मैं मुक्त हूँ । मेरे सभी कष्ट(विपत्ति) विनष्ट हो गये हैं ॥टेक॥
उनके उपदेश सुनकर मुझे अतिशय आनन्द प्राप्त हुआ । मेरी समस्त दुर्बुद्धि(नास्तिकता) विनष्ट हो गयी है । मेरे समस्त सांसारिक भ्रमों के सम्बन्ध में मेरे हृदय के कपाट खोल दिये हैं ॥१॥
गुरुदेव ने मुझ को माया एवं ब्रह्म का भेद(अन्तर) समझा दिया है । उस पर मैंने गम्भीरता से विचार किया है । तदनुसार अब मैंने अपने हृदय में एकमात्र ब्रह्म को स्थान दिया है, तथा माया को दूर भगा दिया है ॥२॥
(क्रमशः)
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