सोमवार, 4 मार्च 2019

= सुन्दर पदावली(१६.राग सोरठ - ११/१) =

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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥ 
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली* 
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
*= १६. राग सोरठ (११/१)=*
*उस, सत गुरु की बलिहारी हो ।* 
*बंधन काटि किये जिनि मुकता,*
*अरु सब बिपति निवारी हो ॥(टेक)* 
*बानी सुनत परम सुष पायौ,*
*दुरमति गई हमारी हो ।* 
*भरम करम के संसै षोले,*
*दिये कपाट उघारी हो ॥१॥* 
*माया ब्रह्म भेद संमुझायौ,*
*सो हम लियौ बिचारी हो ।* 
*आदि पुरुष अभि अंतरि राषे,*
*डांइनि दूरि बिडारी हो ॥२॥* 
मैं उस सद्गुरु की बलिहारी जाता हूँ(कृतज्ञता प्रकट करता हूँ) कि उनने मुझको सदुपदेश कर मेरे सभी सांसारिक बंधन काट दिये । अब मैं मुक्त हूँ । मेरे सभी कष्ट(विपत्ति) विनष्ट हो गये हैं ॥टेक॥ 
उनके उपदेश सुनकर मुझे अतिशय आनन्द प्राप्त हुआ । मेरी समस्त दुर्बुद्धि(नास्तिकता) विनष्ट हो गयी है । मेरे समस्त सांसारिक भ्रमों के सम्बन्ध में मेरे हृदय के कपाट खोल दिये हैं ॥१॥ 
गुरुदेव ने मुझ को माया एवं ब्रह्म का भेद(अन्तर) समझा दिया है । उस पर मैंने गम्भीरता से विचार किया है । तदनुसार अब मैंने अपने हृदय में एकमात्र ब्रह्म को स्थान दिया है, तथा माया को दूर भगा दिया है ॥२॥
(क्रमशः)

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