बुधवार, 6 मार्च 2019

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🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*यहु मन बहु बकबाद सौं, बाय भूत ह्वै जाइ ।*
*दादू बहुत न बोलिये, सहजैं रहै समाइ ॥*
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साभार ~ Raj Gupt

😂😂😂😂😂हास्य - मेव😂😂😂😂😂

डाक्टर पोपटमल, पी.एच.डी. जब खाना खाकर अध्ययन करने के लिए अपने निजी पुस्तकालय में पहुंचे तो उन्होंने देखा कि उनका चश्मा टेबल पर नहीं है। इससे उन्हें बहुत चिंता हुई कि आखिर चश्मा गया कहां? वे उदास होकर कुर्सी पर बैठ गए और सामने रखी टेबल पर दोनों कोहनियां टिकाकर हथेलियों पर सिर रखकर चश्मे के संबंध में मनन करने लगे।
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डाक्टर पोपटमल ने सोचा कि हो न हो कोई चश्मा उठाकर ले गया है। अब यह सवाल उठता है कि जिसने चश्मा उठाया या तो उसे स्वयं कम दिखाई पड़ता है अथवा उसे ठीक दिखाई पड़ता है। यदि उसकी आंखें कमजोर हैं तो वह मेरे चश्मे को कैसे उठाकर ले जा सकता है, क्योंकि उसके पास स्वयं की ऐनक होनी ही चाहिए। और यदि किसी ठीक आंख वाले ने चश्मा उठाया होगा, तो वह उसका करेगा क्या? इससे सिद्ध होता है कि किसी ने मेरा चश्मा नहीं उठाया।
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बगल की ही टेबल पर बैठे पोपटमल के दोस्त पंडित तोताराम शास्त्री ने पूछा क्या बात है, डाक्टर? इतने परेशान क्यों लग रहे हो, यार? मुझे कहो, शायद मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकूं।
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पोपटमल बोले, भाई शास्त्री, मेरा चश्मा न जाने कहां चला गया। चूंकि चश्मा अपने आप कहीं जा नहीं सकता, इससे सिद्ध होता है कि कोई न कोई उसे जरूर उठा ले गया है। चूंकि स्वस्थ आंखों वाला कोई व्यक्ति तो उसे उठा सकता नहीं, और न ही कमजोर आंखों वाला उसे उठाकर ले जा सकता है, क्योंकि उसके पास उसका खुद का चश्मा होगा। आप ही इस समस्या को सुलझाइए।
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पंडित तोताराम शास्त्री ने दो मिनट सोचने के बाद कहा, यह भी तो हो सकता है कि कोई आपके चश्मे को बेचने के खयाल से चुरा ले गया हो।
पोपटमल बोले, ऐसा संभव नहीं। क्योंकि चोर जिसे वह चश्मा बेचेगा उसकी आंखें निश्चित ही कमजोर होंगी। और जैसा कि मैं पहले ही कह चुका हूं कि उसके पास पहले से ही स्वयं का चश्मा होगा।
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इस पर तोताराम शास्त्री बोले, मगर हो सकता है कि किसी कमजोर आंख वाले व्यक्ति का चश्मा टूट-फूट गया हो और उसे नए चश्मे की जरूरत हो। तो या तो वह स्वयं चश्मा उठाकर ले गया, या फिर कोई उसे चश्मा बेचने के खयाल से चुरा ले गया।
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डाक्टर पोपटमल ने तुरंत फोन पर शहर के एकमात्र नेत्र-विशेषज्ञ से बात की और पता लगाया कि जिस नंबर का चश्मा वे लगाते हैं, उस नंबर का चश्मा शहर में किसी और आदमी का भी है या नहीं? नेत्र-विशेषज्ञ ने बताया कि उस नंबर का चश्मा शहर में किसी दूसरे आदमी को नहीं लगता।
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विशेषज्ञ के इस उत्तर से शास्त्री जी की परिकल्पना गलत साबित हो गई। करीब आधा घंटे तक दोनों दार्शनिक गंभीर मुद्रा बनाए चिंतन करते रहे। तब अचानक पंडित तोताराम शास्त्री ने उछलकर अलमारी से एक किताब निकाली और उसमें से पढ़कर बताया कि कभी-कभी ऐसा भी होता है कि लोग चश्मे को भोजन करते वक्त या किसी से बातें करते समय माथे पर ऊपर चढ़ा लेते हैं और फिर भूल जाते हैं।
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डाक्टर पोपटमल के चेहरे पर प्रसन्नता छा गई, उन्होंने कहा, हे राम, यह बात तो मेरे दिमाग में आई ही नहीं। हो न हो ऐसा ही हुआ होगा। अब सवाल यह उठता है कि इस कमरे में हम सिर्फ दो ही आदमी हैं, कोई और इस कमरे में आया नहीं है, तो या तो चश्मा मेरे माथे पर चढ़ा होगा या फिर शास्त्री जी आपके माथे पर। चूंकि मुझे आपके माथे पर कोई चश्मा दिखाई नहीं देता, इससे साफ प्रमाणित होता है कि चश्मा मेरे ही माथे पर होना चाहिए। 
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वैसे तो सत्य का पता लगाने के लिए तार्किक निष्कर्ष ही अकेले काफी हैं, किंतु कुछ विद्वानों का मत है कि लिखा-लिखी की है नहीं देखा-देखी बात, इसलिए तार्किक निष्पत्ति के अलावा मैं आंखों देखा प्रमाण ही प्राप्त करूंगा। ऐसा कहते हुए पोपटमल उठे और आईने के सामने जा पहुंचे। और अपने माथे पर चढ़े हुए चश्मे की प्रतिछवि आईने में देखकर खुशी में चिल्ला उठे मिल गया, मिल गया ! यूरेका, यूरेका !!
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चश्मा मिलने की खुशी में वे इतने जोर से उछले कि चश्मा खिसककर नीचे गिरा और चकनाचूर हो गया। पंडितों से ज्यादा मूढ़ इस जगत में कोई और नहीं है। पंडितों ने अनर्थ कर डाला है।
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पीवत राम - रस लागी खुमारी #2 
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🌺 ओशो🌺🙏🏻🙏🏻🙏🏻

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