मंगलवार, 19 मार्च 2019

= १८८ =

🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
.
साभार ~ *स्वामी कौशिक चैतन्य जी*
.
सजनी ! चलु वा पिय के देस। 
जहँ न मोह ममता की रजनी, जहँ न बिछोह - कलेस।।
जहँ नहिं आवन - जावन कितहूँ, पिय सँग नित्य मिलाप।
जहँ न ग्राम्य चर्चा कौ डर कछु, जहँ न अजस कौ पाप।।
सजनी....
जहँ नहिं हौत अंग - सँग कबहूँ, मिले रहैं दिन -रैन।
बिछुरत नाहिं एक पल मन सौं, मृतक - सजीवन - मैन।।
सजनी....
सहज अकिंचन तन- मन सगरे भरे रहैं पिय-नेह।
आठों जाम धाम प्रियतम कें बरसत रस कौ मेह।।
सजनी....
==================
*मध्य निर्पक्ष*
चलु दादू तहँ जाइये, जहँ मरै न जीवै कोइ ।
आवागमन भय को नहीं, सदा एक रस होइ ॥२३॥ 
टीका - हे जिज्ञासुओं ! विचार द्वारा सहजावस्था रूप समाधि में, स्वस्वरू परब्रह्म में स्थिर होकर, लय लगाइये । फिर वहाँ न कोई जन्मता है और न कोई मरता ही है, क्योंकि उसमें जन्म और मरण के भय का अभाव है ॥२३॥ 

चलु दादू तहँ जाइये, जहँ चंद सूर नहिं जाइ ।
रात दिवस की गम नहीं, सहजैं रह्या समाइ ॥२४॥ 
टीका - हे जिज्ञासुओं ! विचार द्वारा वहाँ जाओ, जहाँ प्रकृति से उत्पन्न चन्द्रमा, सूर्य, रात - दिन की गति कहिए, पहुँच नहीं है । वह चैतन्य ब्रह्मस्वरूप आत्मा सहजभाव से ही सम्पूर्ण संसार में समाया हुआ है, उसी में लय लगाओ ॥२४॥ 

चलु दादू तहँ जाइये, माया मोह तैं दूर ।
सुख दुख को व्यापै नहीं, अविनासी घर पूर ॥२५॥ 
टीका - हे जिज्ञासुओं ! जो ब्रह्म माया प्रपंच से रहित है और निर्मल है और सुख - दुःख से रहित है, उसी में नित्य अनित्य के विचार द्वारा निश्‍चय करना ॥२५॥ 

चलु दादू तहँ जाइये, जहँ जम जोरा को नांहि ।
काल मीच लागै नहीं, मिल रहिये ता मांहि ॥२६॥ 
टीका - हे जिज्ञासुओं ! जिस ब्रह्म - स्वरूप में किसी भी काल - कर्म की गति नहीं है, उस ब्रह्म में विचार द्वारा लय लगाकर अभेद होइये ॥२६॥ 
(श्री दादूवाणी ~ मध्य का अंग)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें