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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= १६. राग सोरठ (१६/१)=*
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*सब कोऊ भूलि रहे इहिं बाजी ।*
*आप आपुने अहंकार मैं*
*पातिसाहि कहा पाजी ॥(टेक)*
*पातिसाहि कहा पाजी ॥(टेक)*
*पातिसाहि कै बिभौ बहुत बिधि*
*षात मिठाई ताजी ।*
*षात मिठाई ताजी ।*
*पेट पयादौ भरत आपनौ*
*जीमत रोटी भाजी ॥१॥*
*जीमत रोटी भाजी ॥१॥*
*पण्डित भूले बेद पाठ करि*
*पढि कुरान कौं काजी ।*
*पढि कुरान कौं काजी ।*
*वै पूरब दिशि करै डण्डवत*
*वै पच्छिम हि निवाजी ॥२॥*
*वै पच्छिम हि निवाजी ॥२॥*
सभी इस खेल में, स्वाभिमान के कारण, क्या सम्राट् या क्या कोई साधारण नागरिक सभी अपनी अपनी स्थिति में उन्मत्त हैं ॥टेक॥
सम्राट् के पास तो इतना अधिक धन है कि वह उससे नाना प्रकार के मिष्ठान की व्यवस्था ही कर लेता है उसका साधारण सेवक भी प्रतिदिन किसी ने किसी युक्ति से घृतप्लुत रोटी विविध शाकसब्जी के साथ खाता है ॥१॥
संस्कृत के पण्डित वेद पुराण पढ़ कर तथा मुसलमान काजी कुरान पढकर, उनका प्रमादवश अपने अनुकूल अर्थ लगा लेते हैं । उसके अनुसार पंडित पूर्व दिशा को प्रणाम करता है तो काजी पश्चिम दिशा की मुख कर नमाज पढ़ते हैं ॥२॥
संस्कृत के पण्डित वेद पुराण पढ़ कर तथा मुसलमान काजी कुरान पढकर, उनका प्रमादवश अपने अनुकूल अर्थ लगा लेते हैं । उसके अनुसार पंडित पूर्व दिशा को प्रणाम करता है तो काजी पश्चिम दिशा की मुख कर नमाज पढ़ते हैं ॥२॥
(क्रमशः)
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