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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= १६. राग सोरठ (१०/२)=*
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*योगी यती तपी संन्यासी,*
*ये सब भरम भुलांने हो ।*
*तीरथ ब्रत जप तप बहु करि करि,*
*उरैं उरैं उरझांने हो ॥३॥*
*गोरष भरथर नाम कबीरा,*
*संतनि मांहिं प्रंवाने हो ।*
*सुन्दरदास कहै गुरु दादू,*
*पहुंचै जाइ ठिकांने हो ॥४॥*
बहुत से योगी, यति, तपस्वी एवं सन्यासी तो साधना करते हुए मध्यमार्ग में ही भटक गये । वे नाना प्रकार के तीर्थ, व्रत, जप एवं तप करते हुए साधना के मध्य मार्ग में ही उलझ गये ॥३॥
उसका साक्षात्कार करने वालों में गोरक्षनाथ, भर्तृहरि, नामदेव एवं सन्त कबीर प्रसिद्ध थे । महात्मा सुन्दरदासजी कहते हैं – अब हमारे सद्गुरु श्रीदादूदयालजी महाराज प्रकट हुए हैं जो उस महत्तम लक्ष्य तक पहुँच पाए हैं ॥४॥
(क्रमशः)
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