सोमवार, 29 अप्रैल 2019

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🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*पर पुरुषा सब परहरै, सुन्दरी देखै जागि ।*
*अपणा पीव पिछाण करि, दादू रहिये लागि ॥*
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साभार ~ oshoganga.blogspot.com

भीड़ में है मनुष्य इसलिए भेड़ मालूम पड़ रहा है। भीड़ से उठे, भीड़ से मुक्त होवे; भीड़ ने खूब अभ्यास करवा दिया है। स्वभावत: भीड़ वही अभ्यास करवा सकती है, जो जानती है। भेड़ों का कसूर भी क्या? भेड़ों ने कुछ जान कर तो कुछ किया नहीं। जो जानती थीं वही सिंह के शावक को भी समझा दिया, करवा दिया।
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जो मां—बाप जानते थे वही सिखा दिया है। न वे जानते थे, न जिसे सिखाया वो जान पा रहा है। जो मां—बाप जानते थे, सिखा गए कि पढ़ते रहना तोते की तरह राम—राम। तो वे भी पढ़ते रहे। वे सिखा गए हैं कि देख, कभी राम—राम मत चूकना; जरूर पढ़ लेना। रोज सुबह उठ कर पढ़ लेना; कि सूरज को नमस्कार कर लेना; कि कुंभ मेला भरे तो हो आना। तो करोड़ भेड़ें इकट्ठी...........। भीड़ वही तो सिखा सकती है, जो जानती है। भीड़ का कसूर भी क्या?
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*'अज्ञानी जैसे ब्रह्म होने की इच्छा करता है वैसे ही ब्रह्म नहीं हो पाता।'*
इस बात को समझें। यह भी अज्ञान है कि मैं इच्छा करूं कि मुझे ब्रह्म होना है, कि मुझे मुक्त होना है। इस इच्छा में ही एक बात सम्मिलित है कि सोचते हैं कि मुक्त नहीं हैं।
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थोड़ा सोचें। वह सिंह जो भेड़ों में खो गया था, पूछने लगता दूसरे सिंह से कि मुझे भी सिंह होना है, रास्ता बताओ। और वह बता देता उसको रास्ता कि देख बेटा, सिर के बल खड़ा हुआ कर, शीर्षासन किया कर, इससे धीरे— धीरे सिंह हो जाएगा। या रोज बैठ कर अभ्यास किया कर, सोचा कर कि मैं सिंह हूं मैं सिंह हूं। ऐसे धीरे—धीरे सोचने से, अभ्यास करने से, चिंतन—मनन—निदिध्यासन से हो जाएगा।
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तो बात चूक जाती। वह सिंह अगर बैठ—बैठ कर अभ्यास करता रहता, आसन— व्यायाम इत्यादि करता, और बार—बार सोचता और शास्त्र पढ़ता और दोहराता कि मैं सिंह हूं और हिम्मत बांधता, तो झूठ अभ्यास होता। सिंह होने की जरूरत नहीं है, सिंह होने का बोध जगना चाहिए। अभ्यास नहीं, बोध।
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धन्यो विज्ञानमात्रेण।
धन्य हैं वे, जो सुन कर जाग जाते हैं। 
जिन्होंने देखा चेहरा अपना दर्पण में और पहचाना।
मूढ़ो नाम्पोति तद्ब्रह्म यतो भवितुमिच्छति।
यह होने की आकांक्षा ही फिर न होने देगी। जो हैं—होना नहीं है, सिर्फ जागना है। इसलिए धार्मिक व्यक्ति वह नहीं, जो धार्मिक होना चाहता है। वो तो पाखंडी हो जाएगा। धार्मिक व्यक्ति वो है जो उसे देख लेता है, जो है। जो होना चाहता है, यह बात ही गलत है। बिकमिंग, भवितुमिच्छति, कुछ होना, यह धार्मिक आदमी का लक्षण नहीं है; बीइंग, जो है, उसे जान लेना। होने की दौड़ संसार है और जो है, उसके प्रति जागना धर्म है।

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