#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*काया कबज कमान कर, सार शब्द कर तीर ।*
*दादू यहु सर सांध कर, मारै मोटे मीर ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ Tapasvi Ram Gopal
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**शूरातन का अंग ७१**
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सब शूरों शिर शूरमा, जे जीते गुण जोध१ ।
जन रज्जब झूझार२ सो, ता का उत्तम बोध ॥३७॥
जो योद्धाओं१ को जीतता है, वही शिरोमणी वीर है और जो कामादि गुणों को जीतता है वही संत शूर२ है, उसका ज्ञान उत्तम है ।
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बहुत शूर बहु भाँति के, जोध१ बड़े जग माँहि ।
जो रज्जब मारे मदन२, ता सम कोई नाँहिं ॥३८॥
जगत् में बहुत वीर हैं, तथा कर्मवीर, धर्मवीर आदि बहुत प्रकार के योद्धा१ हैं किन्तु जो काम२ को मारता है, उसके समान कोई भी नहीं है ।
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मन इन्द्री जिन वश करी, मार्या मदन भुवंग ।
सो रज्जब सहजे मिलै, परम पुरुष के संग ॥३९॥
जिसने मन इन्द्रियों को अपने वश किया है और काम रूप सर्प को मारा है, वह अनायास ही परम पुरुष परमात्मा से मिलता है अर्थात परमात्मा रूप हो ही जाता है ।
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माँही मारै गुणहु को, बाहर जग सौं युद्ध ।
जन रज्जब सो शूरमा, रोपि रह्या कुल शुद्ध ॥४०॥
भीतर कामादि गुणों को मारता है, बाहर भ्रष्टाचार को रोक कर शिष्टाचार स्थापन के लिये जगत से युद्ध कर रहा है, दोनों प्रकार के युद्धों में अपने पैर रोप कर स्थिर है, वही शुद्ध कुल में उत्पन्न शूरवीर है ।
(क्रमशः)
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