#daduji
॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*विनती का अँग ३४*
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नीधणि आया मारिये, धणी न धोरी कोइ ।
दादू सो क्यों मारिये, साहिब शिर पर होइ ॥४५॥
यह जीवात्मा स्वामी -
रहित वस्तु के समान जन्म - जन्म कर काल के द्वारा मारा जाता है । क्योंकि इसने
अपने रक्षक स्वामी परमात्मा को किसी प्रकार भी न अपनाया । जो सर्व - भाव से भगवान्
की शरण हो जाता है और जिसके शिर पर रक्षक ईश्वर है,
वह काल के द्वारा किसी प्रकार भी नहीं मारा जा सकता ।
(क्रमशः)
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