सोमवार, 22 अप्रैल 2019

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🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*दादू जे तूं प्यासा प्रेम का, तो किसको सेतैं जीव ।*
*शिर के साटै लीजिये, जे तुझ प्यारा पीव ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ शूरातन का अंग)*
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साभार ~ oshoganga.blogspot.com

प्यास हो नहीं सकती। यदि कहते हैं प्यास है; है नहीं। क्योंकि प्यास ही तो पथ है। प्यास हो तो पथ मिल ही गया। प्यास से अलग पथ कहां ! ये पथ इत्यादि की बातें तो प्यास की कमी के कारण ही पैदा होती हैं। प्यास नहीं तो पूछते हैं, पथ कहां है? प्यास हो, ज्वलंत प्यास हो, रोआं—रोआं जलता हो, आग लगी हो विरह की, लपटें उठी हों खोज की—कोई पथ नहीं पूछता। प्यास पथ बना देती है।
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ऐसा समझें, घर में आग लग गई हो, तब थोड़े ही कोई ये पूछता है कि द्वार कहां, मुख्य द्वार कहां; कहां से निकलूं, कहां से न निकलूं? खिड़की से कूद जाते हैं। फिर यह थोड़े ही देखते हैं कि यह मुख्य द्वार नहीं है—जब घर में आग लगी हो—यह खिड़की से कूद रहा हैं, यह शिष्टाचार के विपरीत है ! फिर नक्शा थोड़े ही पूछते हैं कि नक्शा कहां है? फिर मार्गदर्शन थोड़े ही चाहते हैं। फिर रुकते थोड़े ही हैं किसी से पूछने को। घर में आग लगी हो तो प्राण ऐसे आकुल हो जाते हैं निकलने को बाहर कि मनुष्य राह खोज लेता है, आकुलता राह बन जाती है।
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राह इत्यादि की बातें तो लोग फुरसत में पूछते हैं; असल में जब निकलना नहीं होता तब पूछते हैं, तब वे कहते हैं : 'कैसे निकलें, पहले राह तो पता हो। मार्गदर्शन तो हो।' फिर मार्गदर्शन भी मिल जाए तो वे पूछते हैं : 'क्या पक्का है कि यह मार्ग सही है? फिर और भी तो मार्ग हैं, अकेले यही तो नहीं। कौन सही है? पहले यह तो तय हो जाए।'
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भगवान बुद्ध सही, कि महावीर सही, कि श्रीकृष्ण —कौन सही है? पहले यह तो पक्का हो जाए। निकलेंगे जरूर। निकलना है। लेकिन जब तक मार्ग साफ न हो, सुनिश्चित न हो, तब तक कैसे चलें?' तब तक घर में बैठे हैं मजे से, अपना काम— धाम जारी रखे हैं। ये तरकीबें हैं बचाव की।
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कहते हैं 'प्रभु को पाने का मार्ग क्या है? प्यास तो है, पर पथ नहीं मिलता।’
नहीं, जरा प्यास को फिर से टटोलें। जरा खोल कर फिर देखें—प्यास नहीं होगी। प्यास होती तो मार्ग क्यों न मिलता? प्यास होती तो दांव लगा देते। प्यास होती तो मार्ग खोज लेते। क्योंकि मार्ग तो है; जहां खड़े हैं वहीं से मार्ग जाता है। लेकिन जब तक प्यास नहीं, तब तक उस मार्ग से संबंध नहीं हो पाता है।
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बजाय मार्ग खोजने के प्यास को गहरा करें। गहराएं,प्यास को जगाएं कि प्यास की लपटें जोर से उठें। जब तक प्यास विक्षिप्त न हो जाए, जब तक ऐसी घड़ी न आ जाए कि सब दांव पर लगाने को राजी हों, तब तक समझ लें कि प्यास नहीं हैं।

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