#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*तुम षेलहु फाग पियारे कन्त ।*
*अब आयौ है फागुन ॠतु बसंत ॥(टेक)*
*घसि प्रेम प्रीति केसरि सुरङ्ग,*
*यह ज्ञान गुलाल लगावै अङ्ग ।*
*भरि सुमति पिचरकी अपनै हाथ,*
*हम भरिहैं तुमहिं त्रिलोकनाथ ॥१॥*
*तुम हमहिं भरहु करि अधिक प्यार,*
*हम तुमहिं भरहिं प्रभु बार बार ।*
*निसबासर षेल अषंड होइ,*
*यह अदभुत षेल लषै न कोइ ॥२॥*
*वसन्तोत्सव विधि -*
हे प्रिय पतिदेव ! अब इस वसन्तोत्सव के शुभ अवसर पर आप हमारे साथ फाल्गुन मास के इस वसन्तोत्सव क्रीडा में सम्मिलित होइये ॥टेक॥
हे त्रिलोकीनाथ ! प्रेम प्रीति की अच्छी रंग वाली केसर घिसकर गुलाल के साथ हमारे शरीर पर मलिये । हम भी अपने हाथ से सुमति की पिचकारी भरकर तुम्हारी ओर फेंकेगे ॥१॥
यह पिचकारी का खेल ऐसा होगा कि आप और हम परस्पर एक दूसरे को बार-बार मारें । यह खेल निरन्तर चलता रहे; तथा इस अद्भुत खेल को कोई देखने भी न पावे ॥२॥
(क्रमशः)
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