रविवार, 28 अप्रैल 2019

= *शब्द परीक्षा का अंग ७३(९/१२)* =

#daduji

卐 सत्यराम सा 卐 
*दादू गुण तजि निर्गुण बोलिये, तेता बोल अबोल ।*
*गुण गहि आपा बोलिये, तेता कहिये बोल ॥*
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**श्री रज्जबवाणी** 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
साभार विद्युत् संस्करण ~ Tapasvi Ram Gopal
*शब्द परीक्षा का अंग ७३* 
इन्द्र गाज बोली बडी, वाणी बीज१ विशेष । 
एकहिं तिमिर न दूर ह्वै, एकहिं सब कुछ देख ॥९॥ 
इन्द्र की गर्जना महान होती है, किन्तु बिजली१ की ध्वनि उससे विशेष होती है अंधेरा दूर नहीं होता और बिजली से सब कुछ दीख जाता है वैसे ही आत्मा श्लाघादि बड़ी २ वाणी से अज्ञान दूर नहीं होता किन्तु ब्रह्म - ज्ञान संपन्न वाणी से दूर हो जाता है । 
जगत जाणि१ जीगण२ जुगति३, वेत्ता४ बीज५ समान । 
जन रज्जब चमकहि उभय, बल पौरुष६ न समान ॥१०॥ 
जुगनू२ और बिजली५ दोनों चमकते हैं किन्तु उनका प्रकाश बल समान नहीं होता, वैसे ही संसारिक जीवों की और ज्ञानी४ की; बुद्धि१ युक्ति३ रूप बल६ समान नहीं हो सकता ।
दामिनि१ दमक दिशावर दीसै, जैंगन२ चमक सु ग्वाड़ि३ । 
तैसे वाणी वद४ हि सु बंदे, जैसी जिनमें बाडि५ ॥११॥
बिजली१ की चमक तो देशान्तरों में भी दीखती है, जुगनू२ की चमक केवल घर के चौक३ में ही दीखती है, वैसे ही मनुष्य वैसी ही वाणी बोलते४ हैं जैसे शिक्षकों द्वारा उनमें प्रवेश५ हुई है । 
चिड़ी चील कूंजी कुरल१, सम न होंहि स्वर जोख२ । 
इक नीड३ हि इक नगर में, इक शत योजन पोख ॥१२॥ 
चिड़िया चील और कूंजी इनकी आवाज१ समान नहीं होती, जाँचने२ से ज्ञात होगा, चिड़िया की आवाज उसके धोंसले३ के पास ही रहती है, चील की गांव में भी सुन जाती है और कूंज की तो सौ योजन जाकर हिमालय में उसके अंडे का पोषण करती है, इसी प्रकार मनुष्यों के शब्द - रहस्य में भेद रह जाता है । 
(क्रमशः)

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