रविवार, 28 अप्रैल 2019

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🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*पहली प्राण विचार कर, पीछे चलिये साथ ।*
*आदि अंत गुण देखकर, दादू घाली हाथ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ विचार का अंग)*
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🦅 *सम्पाती और जटायु की कथा* 🦅
सम्पाती और जटायु सगे भाई थे। दोनों जब युवा थे, तो विचार किया कि ऊपर सूर्य की ओर चला जाय। गीध जाति में हमारा जन्म हुआ है, फलतः *हम लोग ऊपर तो उड़ लेते हैं, पर दुर्भाग्य से हमारी दृष्टि नीचे ही रहती है।* 
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गीध के पास दो वस्तुएँ अच्छी होती हैं -- एक तो पंख, उड़ने की शक्ति और दूसरी, पैनी आँख। *पंख यदि कर्म का, पुरुषार्थ का प्रतीक है, तो नेत्र ज्ञान का। गीध का पुरुषार्थ भी बड़ा होता है और ज्ञान भी। पर वह दोनों का उपयोग किस उद्देश्य की सिद्धि के लिए करता है ? पुरुषार्थ से वह बहुत ऊँचे तो उठ जाता है, पर पैनी आँख का उपयोग नीचे दृष्टि करके मुर्दे को खोजने के लिए करता है, जिससे कहीं मुर्दा पड़ा मिल जाए, तो चलकर खाए। तात्पर्य यह कि पुरुषार्थ चाहे जितना ऊँचा हो, पर यदि उद्देश्य विषयरूप सड़े हुए मांस को ही खोजना हो, तो ऐसे स्थल पर गोस्वामीजी की यह उक्ति ही लागू होती है --* 
*'वेद पुरान अनेक पढ़े, बिगड़े सब पेट उपायन में'।* 
*कर्म तो ऊँचे पर दृष्टि नीचे अधोमुखी।* 
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इसीलिए सम्पाती ने जटायु से कहा कि हम लोग ऊपर की ओर, सूर्य की ओर चलें, प्रकाश की ओर चलें। मृत्यु की ओर क्यों चलें ? जटायु ने कहा -- ठीक है, चलते हैं। जब दोनों सूर्य की ओर चलने लगे, तो तेज बढ़ने लगा। *सूर्य में प्रकाश और दाहकता दोनों हैं। बुद्धिमता इसमें है कि प्रकाश को लेकर दाहकता को, जलाने के गुण को छोड़ दिया जाय।* 
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जब भी दोनों पर उठने लगे, तो देखा कि प्रकाश तो नीचे भी उतना ही था, पर हाँ, ताप बढ़ रहा है, सूर्य की जलानेवाली शक्ति बढ़ रही है। जटायु ने कहा -- मैं तो और ऊपर नहीं जाऊँगा, और ऐसा कह वे लौट गये, पर सम्पाती अपने हठ पर अड़ा रहा और ऊपर की ओर गमन करता रहा। तो क्या जटायु कायर है और सम्पाती वीर ? कभी-कभी बात उल्टी हो जाती है। जो वीर दिखाई देता है, वह असल में कायर होता है और जो कायर दिखता है, वह वीर होता है। 
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मन की वृत्ति बड़ी विचित्र होती है। गोस्वामीजी मनोविज्ञान की एक बढ़िया बात लिखते हैं। रावण ज्यों ज्यों मृत्यु के पास पहुँचने लगा, त्यों त्यों गरजने लगा। क्यों ? इसलिए कि *"गर्जा अति अंतर बल थाका"* (६/९१/२) -- उसका अंतर का बल चुक गया था। इसीलिए बाहर का बल दिखला रहा था। *ह्रदय में जब शक्ति नहीं रह जाती, तब मनुष्य वाणी के द्वारा, चिल्लाकर शक्ति का प्रदर्शन किया करता है। यह दुर्बलता का ही प्रतीक है।* 
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तो, जटायु भले ही कायर के समान दिखे, पर वस्तुतः वे वीर थे। उनके मन में विचार का उदय हुआ कि क्या सचमुच हम लोग प्रकाश को पाने के लिए ऊपर जा रहे हैं ? उन्हें लगा कि नहीं, यदि प्रकाश को पाना ही उद्देश्य होता तब तो प्रकाश नीचे ही था, उसे पाने के लिए ऊपर जाने की कोई आवश्यकता न थी, यह तो हम संसार को अपनी महानता दिखलाने के लिए जा रहे हैं कि देखो हम लोग कितना ऊपर उठे हुए हैं कि सूर्य तक पहुँच गए ! अब यदि सूर्य तक पहुँच ही गए, तो इतना ही सिद्ध होगा न कि जहाँ तक कोई नहीं पहुँच पाया, वहाँ हम पहुँच गए। इसके अतिरिक्त और क्या लाभ होगा ? बल्कि हानि ही की सम्भावना है कि सूर्य के उत्ताप से, हमारे अहंकार की ज्वाला से हमारा जीवन ही कहीं जलकर नष्ट न हो जाय। 
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इसलिए जटायु सम्पाती को भी वापस लौट चलने की सलाह देते हैं -- पहुँच भी जाओगे तो क्या मिलने का ? बल्कि व्यर्थ जीवन के नष्ट होने की सम्भावना है। चलो, लौट चलें। पर सम्पाती नहीं लौटता और जिद में ऊपर ही ऊपर गमन कर अन्त में अपने पंख जला कर नीचे गिर पड़ता है। अब कौन कायर है ? गोस्वामीजी संकेत देते हैं कि यदि यदि जटायु कायर होते, तो क्या चुनौती देकर वे रावण से लड़ते ? उस युद्ध में जटायु के पंख नष्ट होते हैं। 
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तो, *जटायु और सम्पाती इन दोनों के पंख नष्ट होने में क्या समानता है ? नहीं, क्योंकि दोनों का उद्देश्य अलग-अलग था। सम्पाती के पंख नष्ट हुए सूर्य तक पहुँचने में और जटायु के पंख नष्ट हुए श्री सीताजी को बचाने में। एक ने अहंकार के लिए अपना विनाश करा लिया और दूसरे ने भक्तिदेवी की रक्षा के लिए, उनकी सेवा के लिए अपने आपका बलिदान कर दिया। अतः दोनों में बड़ा अन्तर है।*
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-- परमपूज्यपाद् सद्गुरुदेव श्रीरामकिंकरजी महाराज 🌸🙏🏻

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