रविवार, 28 अप्रैल 2019

= ५९ =


🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*ज्यों दर्पण के नहिं लागै काई,*
*त्यों मूरति माँही निरख लखाई ॥*
*सहजैं मन मथिया तत पाया,*
*दादू उन तो आप लखाया ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ पद्यांश. ३८६)*
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साभार ~ oshoganga.blogspot.com

भीतर की आत्मा परम बुद्ध की स्थिति में है; परम ज्ञानी की स्थिति में है। वहां रसधार बह रही। वहां अमृत बरस रहा। वहां प्रकाश ही प्रकाश है; अंधकार वहां प्रवेश ही नहीं कर पाया। वहां अंधकार प्रवेश कर भी नहीं सकता,स्वयं महाचैतन्य के स्रोत हैं। भीतर प्रभु विराजमान है—शुद्ध, बुद्ध, प्रिय, पूर्ण, प्रपंचरहित और दुखरहित।
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*'अज्ञानी पुरुष अभ्यासरूपी कर्म से मोक्ष को नहीं प्राप्त होता है। क्रियारहित ज्ञानी पुरुष केवल ज्ञान के द्वारा मुक्त हुआ स्थित रहता है।'*
मोक्ष कोई लक्ष्य नहीं है, कोई गंतव्य नहीं है। मोक्ष आगे नहीं है, मोक्ष को हाथ फैला कर नहीं खोजना है, मोक्ष को आंख भीतर डाल कर खोज लेना है। मोक्ष गहराई में पड़ा हुआ हीरा है। घूमो तट—तट, बीनो शंख—सीपी, हीरा न मिलेगा। हीरा तो लगाएंगे डुबकी, जाएंगे गहरे अपने में, स्व के सागर में, तो पाएंगे।
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*'अज्ञानी पुरुष अभ्यास रूपी कर्म से मोक्ष को नहीं प्राप्त होता...।'*
नाभोति कर्मणा मोक्ष विमूढ़ोऽभ्यासरूपिणा।
कितना ही करें अभ्यास—जप, तप, उपवास करें; कितना ही करें अभ्यास—छोड़ें संसार, त्याग करें, भाग जाएं हिमालय; कितना ही करें अभ्यास, मोक्ष न पाएंगे। क्योंकि मौलिक दृष्टि तो अभी खुली नहीं कि मोक्ष स्वयं का ही स्वभाव है। फिर कहां जाना हिमालय? जो यहां नहीं हो सकता, हिमालय पर भी नहीं होगा। और जो यहां हो सकता है, उसके लिए हिमालय जाने की क्या जरूरत है?
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धन ने किसी को नहीं रोका है। धन क्या रोकेगा? चांदी के ठीकरे क्या रोक सकते हैं? न मकान ने रोका है, न दुकान ने रोका है, न बच्चे, न पत्नी, न पति ने रोका है। कोई दूसरा कैसे रोक सकता है? रुके हैं अपनी मूढ़ता से, मूढ़ता तोड़ें और कहीं न जाएं, और कुछ न छोड़ें, सिर्फ मूढ़ता तोड़ें।

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