#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*तूंहीं राम हूं हीं राम*
*बस्तु बिचारें भ्रम द्वै नाम ॥(टेक)*
*तूं ही हूं ही जब लग दोइ,*
*तब लग तूं ही हूं ही होइ ॥१॥*
*तूं ही हूं ही सोहं दास,*
*तूं ही हूं ही बचन बिलास ॥२॥*
*तूं ही हूं ही जबलग कहै,*
*तब लग तूं ही हूं ही रहै ॥३॥*
*तूं ही हूं ही जब मिट जाइ,*
*सुन्दर ज्यौं कौ त्यौं ठहराइ ॥४॥*
तूँ भी राम स्वरूप है, मैं भी राम स्वरूप हूँ । अतः यथार्थत: विचार करने पर, ये दो नाम भ्रमात्मक ही ज्ञात होते हैं ॥टेक॥
जब तक हम में ‘तूं’ या ‘मैं’ का भ्रम है तभी तक ये ‘तू’ और ‘मैं’ भिन्न प्रतीत होते हैं ॥१॥
वस्तुतः जब तक हम ‘तूं’ या ‘मैं’ को. दो मानते रहेंगे तभी तक लोक में यह व्यवहार वचन विलास के रूप में बना रहेगा ॥२॥
अतः जब तक हम लोग परस्पर ‘तूं’ और ‘मैं’ का व्यवहार करते रहेंगे तब तक यह ‘तूं’ ‘मैं’ का ही व्यवहार बना रहेगा ॥३॥
परन्तु जिस दिन हम गुरुपदेश के प्रभाव से इस ‘तूं’ ‘मैं’ को मिटा देंगे(भूल जायेंगे), महाराज सुन्दरदासजी का कथन है कि तब हम लोग यथार्थस्थिति(एकमेवाद्वितीयं ब्रह्म) में पहुँच जायेंगे ॥४॥१४३॥
(क्रमशः)
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