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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= १७. राग जैजैवन्ती(२/२)=*
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*बांवैं कानि सुनि भावै दाहिनै पुकारि कहूं ।*
*अबकै न चेत्यौ तो तूं पीछै पछिताइ है ॥२॥*
*भावै आज भावै कल्पन्त बीतैं होइ ज्ञान ।*
*तबही तूं अबिनासी पद मैं समाइ है ॥३॥*
*सुन्दर कहत सन्त मारग बतावैं तोहि ।*
*तेरी पुसी परै तहां तूं हीं चलि जाइ है ॥४॥(१३४)*
भले ही तूँ मेरी यह(शिक्षाप्रद) वार्ता वाम कर्ण से सुन, या दक्षिण कर्ण से कि तूँ मेरे कहने से इस बार न सावधान हुआ तो बाद में पश्चात्ताप ही करता हुआ रह जायगा ॥२॥
तूझे मेरी कही हुई यह बात(ज्ञान) आज समझ में आये या एक कल्प के बाद, बस ! उसी समय से तूँ अविनाशी पद में स्थित हो जायगा ॥३॥
महात्मा सुन्दरदासजी कहते हैं – यह बात मैं नहीं कह रहा, यह तो सन्तों की बतायी हुई बात(मार्ग) है । अब तुम्हारी इच्छा(ख़ुशी) जैसी हो तदनुसार तुम ही को चलना है ॥४॥१३४॥
(क्रमशः)
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