शुक्रवार, 26 अप्रैल 2019

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🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*आप आपण में खोजो रे भाई,*
*वस्तु अगोचर गुरु लखाई ॥*
*ज्यों मही बिलोये माखण आवै,*
*त्यों मन मथियां तैं तत पावै ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ पद्यांश. ३८६)*
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साभार ~ oshoganga.blogspot.com

दूसरों को हंसते देख कर हरेक को ऐसा लगता है कि शायद मुझसे ज्यादा दुखी आदमी दुनिया में कोई नहीं। क्योंकि उसे अपने भीतर की असलियत पता है, दूसरों को तो सिर्फ उसका मुखौटा पता है। सबको धोखा दे लें, अपने को कैसे धोखा दे पाएंगे? कितना ही दें, लाख करें उपाय, असलियत बीच—बीच में उभरती रहेगी और बताती रहेगी कि सब झूठ हैं।
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और जब तक झूठ हैं तब तक दुख है। सच होते ही मनुष्य सुखी होता है, प्रामाणिक होते ही सुखी होता है। 
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*'इस संसार में अभ्यास—परायण पुरुष उस आत्मा को नहीं जानते हैं, जो शुद्ध है, जो बुद्ध है, जो प्रिय है, जो पूर्ण है, जो प्रपंचरहित है और जो दुखरहित है।'*

जिसे सभी लेकर आए हैं, जिस संपदा को सभी अपने भीतर लिए बैठे हैं, उस तिजोड़ी को खोला ही नहीं।तिजोड़ी के ऊपर और न मालूम क्या—क्या रंग—रोगन चढ़ा दिया। तिजोड़ी खोली ही नहीं,रंग—रोगन के कारण यह भी हो सकता है कि अब ताली भी न लगे। इतना रंग—रोगन कर दिया है कि ताली का छेद भी बंद हो गया हो। और जिसे खोज रहे हैं वह भीतर बंद है। सभी उसे लेकर आए हैं।
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यह विरोधाभास लगेगा, लेकिन इसे याद रखें। इस पृथ्वी पर उसी को खोजने के लिए भेजे गए हैं, जो मिला ही हुआ है। इस पृथ्वी पर उससे ही परिचित होने आए हैं, जो स्वयं हैं। कुछ और होना नहीं है। 
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जो हैं उससे ही पहचान बढ़ानी है; उसके ही आंख में आंख डालनी है; उसका ही हाथ में हाथ लेना है; उसका ही आलिंगन करना है। और तब पाएंगे, कभी अशुद्ध हुए ही नहीं। शुद्ध हैं और कभी बुद्ध से क्षण भर नीचे नहीं उतरे।

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