शुक्रवार, 26 अप्रैल 2019

= ५७ =

🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*दादू साचा साहिब शिर ऊपरै, तती न लागै बाव ।*
*चरण कमल की छाया रहै, किया बहुत पसाव ॥*
=========================
साभार ~ Atul Solanki

🌹🌺🌹प्रेम है महामृत्यु :

मीरा का प्रेम राधा के प्रेम से भी बड़ा है। होना भी चाहिए। 🌹अगर राधा प्रसन्न थी कृष्ण को सामने पाकर, तो यह तो कोई बड़ी बात न थी। लेकिन मीरा ने पांच हजार साल बाद भी सामने पाया, यह बड़ी बात थी।
.
जिन गोपियों ने कृष्‍ण को मौजूदगी में पाया और प्रेम किया–प्रेम करने योग्य थे वे, उनकी तरफ प्रेम सहज ही बह जाता, वैसा उत्सवपूर्ण व्यक्तित्व पृथ्वी पर मुश्किल से होता है-तो कोई भी प्रेम में पड़ जाता। लेकिन कृष्ण गोकुल छोड़कर चले गए द्वारका, तो बिलखने लगीं गोपियां, रोने लगा, पीड़ित होने लगीं। गोकुल और द्वारका के बीच का फासला भी वह प्रेम पूरा न कर पाया।
.
वह फासला बहुत बड़ा न था। स्थान की ही दूरी थी, समय की तो कम से कम दूरी न थी। मीरा को स्थान की भी दूरी थी, समय की भी दूरी थी; पर उसने दोनों का उल्लंघन कर लिया, वह दोनों के पार हो गयी। प्रेम के हिसाब में मीरा बेजोड़ है।
.
एक क्षण उसे शक न आया, एक क्षण उसे संदेह न हुआ, एक क्षण को उसने ऐसा व्यवहार न किया कि कृष्ण पता नहीं, हों या न हों। वैसी आस्था, वैसी अनन्य श्रद्धा : फिर समय की कोई दूरी-दूरी नहीं रह जाती। दूरी रही ही नहीं।
.
प्रेमी अंतराल को मिटा देता है। प्रेम की तीव्रता पर निर्भर करता है। मीरा के लिए कृष्‍ण समसामयिक थे। किसी और को न दिखायी पड़ते हों, मीरा को दिखायी पड़ते थे। किसी और को समझ में न आते हों, मीरा उनके सामने ही नाच रही थी। मीरा उनकी भाव- भंगिमा पर नाच रही थी। मीरा को उनका इशारा-इशारा साफ था।

यह थोड़ा हमें जटिल मालूम पड़ेगा, क्योंकि हमारा भरोसा शरीर में है।
ओशो.....♡🌹

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें