गुरुवार, 18 अप्रैल 2019

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🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*धनि धनि साहिब तू बड़ा, कौन अनुपम रीत ।*
*सकल लोक सिर सांइयां, ह्वै कर रह्या अतीत ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ विश्वास का अंग)*
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साभार ~ oshoganga.blogspot.com

उपवास करो तो कृत्य हो गया। रात सोओ मत, जागते रहो तो कृत्य हो गया। जीने का नाम कृत्य है। जब तक जी रहे हैं, कुछ तो करेंगे। जब तक जीवन है तब तक कृत्य है, खयाल में ले लें। 
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कर्म से भागने का तो कोई उपाय नहीं। जो भी करेंगे वही कर्म होगा। इसलिए कर्म से तो भागने की चेष्टा करना ही मत। उसमें तो धोखा बढ़ेगा। असली काम दूसरा है : अहंकार से मुक्त होना। कर्ता के भाव को गिराना। कर्म को गिराने से कुछ अर्थ नहीं है, कर्ता को जाने दें; फिर जो परमात्मा करवाएगा, करवा लेगा। नहीं करवाएगा, नहीं करवाएगा। खाली बिठाना होगा, खाली बिठा देगा। चलाना होगा, चलाता रहेगा। लेकिन न अपने से चलेंगे, न अपने से बैठेंगे।
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इसको ही तो सांख्य ने कहा, सूखे पत्ते की भांति। हवाएं जहां ले जाएं, सूखा पत्ता चला जाता है। वह नहीं कहता है कि मुझे पूरब जाना है, यह क्या अत्याचार हो रहा है कि तुम मुझे पश्चिम लिए जा रहे हो? मुझे पूरब जाना है। सूखा पत्ता कहता ही नहीं कि मुझे कहां जाना है। पूरब तो पूरब, पश्चिम तो पश्चिम। ले जाओ तो ठीक, न लें जाओ तो ठीक। छोड़ दो राह पर तो वहीं घर। उठा लो आकाश में तो गौरवान्वित नहीं होता, गिरा दो कूड़े—कर्कट में तो अपमानित नहीं होता।
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सूखे पत्ते की भांति जो हो गया वही ज्ञानी है। और इस दशा को ही निर—अहंकार कहा है।
यस्यांत: स्यादहंकारो न करोति करोति सः।
'जिसके अंतःकरण में अहंकार है, वह जब कर्म नहीं करता तो भी करता है।'
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अगर खाली बैठेंगे अहंकार से भरे हुए तो मन में यह भाव उठेगा कि देखो, कुछ भी नहीं कर रहे हैं। मन में यह भाव उठेगा कि देखो, सारी दुनिया मरी जा रही है आपा— धापी में; हम देखो कैसे शांत बैठे हैं ! ध्यान कर रहे हैं। जब कि सारी दुनिया धन के पीछे मरी जा रही है, हम ध्यान कर रहे हैं; हमको देखो ! यह नया कर्ता का भाव पैदा हुआ।
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और ख्‍याल रहे,आंधी दिखाई नहीं पड़ती, तरंगें दिखाई पड़ती है। जो दिखाई पड़ता है उससे लड़ने का मन होता है। जो दिखाई नहीं पड़ता उसकी तो याद ही नहीं आती। इसलिए सांख्य पतंजलि से गहरे जाते है। पतंजलि की बात सीधी—साफ है। लहरें दिखाई पड़ रही है। चित की, इनको शांत करो। यम से, नियम से, आसन से, धारणा से, ध्यान से, समाधि से इन्हें शांत करो। इनके शांत हो जाने से कुछ होगा। योग का मार्ग है चित्त के साथ संघर्ष का।
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पतंजलि पूरे होते हैं समाधि पर; और सांख्य की यात्रा ही शुरू होती है समाधि को छोड़ने से। जहां अंत आता है पतंजलि का वहीं प्रारंभ है सांख्य का। सांख्य आखिरी वक्तव्य हैं। इससे ऊपर कोई वक्तव्य कभी दिया नहीं गया। यह इस जगत की पाठशाला में आखिरी पाठ है। और जो सांख्य को समझ ले, उसे फिर कुछ समझने को शेष नहीं रह जाता। उसने सब समझ लिया। और जो सांख्य को समझ कर अनुभव भी कर ले, धन्यभागी है। वह तो फिर ब्रह्म में रम गया।
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जब तक आशय में बंधे हैं, तब तक सीमा है। जिस दिन आशय से मुक्त हुए उसी दिन सीमा से मुक्त हुए। सीमा धारणा में है,खींच रखी है। यह जो लक्ष्मण रेखा खींच रखी है, किसी और ने नहीं खींची है,खुद ने ही खींच रखी है। और अब निकल नहीं पाते। अब कहते हैं, लक्ष्मण रेखा के बाहर कैसे जाएं? डर लगता है। घबड़ाहट होती है।

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