शनिवार, 6 अप्रैल 2019

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🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*दादू निर्मल सुन्दरी, निर्मल मेरा नाह ।*
*दोन्यों निर्मल मिल रहे, निर्मल प्रेम प्रवाह ॥*
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साभार ~ Osho Amrutvaani
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*माई री में तो लियो गोविन्दो मोल।*
*कोई कहै मुंहगो कोई कहै सुंहगो, लियो री तराजू तोल॥*
परमात्मा के मार्ग पे चलना तो वहां से पड़ता है जहां हम वास्तव में हैं। मीराबाई कहती हैं, ये दोनो अतियां हैं। जहां तराजू समतुल हो जाता है ठीक मध्य में, न कठिन, न सस्ता, न तो तप-तपश्चर्या से मिलता है, न ऐसे बैठे-बैठे मंत्र जपने से मिलता है, जहां चित्त का तराजू समतुल हो जाता है, जहां समता आ जाती है, वहीं मिलता है परमात्मा।
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इसे जानना होगा, *"लियो री तराजू तोल"।*
जिसने समझा परमात्मा बहुत मंहगा है, उसके जीवन मे असंतुलन होगा। जिसने समझा बहुत सस्ता है, करना ही क्या है, मृत्यु के क्षण भी याद कर लिया तो चल जाएगा, कुछ चुकाने की जरा भी तैयारी नहीं है। ये दोनो अतियां हैं। लियो री तराजू तोल। जहां चित्त अति नहीं करता। और इसे ही समझना हैः जब चित्त अति नहीं करता तब चित्त समाप्त हो जाता है। चित्त का जीवन ही अति में है। मन हमेशा अति करता है। ज्यादा भोजन कर लिया तो मन उपवास का विचार करता है कि उपवास कर लें।
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फिर उपवास कर लिया तो विचार करने लगा कि क्या-क्या भोजन करें, भोजन के ही विचार आने लगते हैं। ये ही मन की अवस्था है। समता पर नहीं रुकता। सम्यक भोजन का अर्थ है, न तो जरा ज्यादा, न जरा कम। ये ही कला है। इसी से जीवन की वीणा मे संगीत जन्मेगा।
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*माई री मैं तो लियो गोविन्दो मोल।*
*कोई कहै कालो, कोई कहै गोरो, लियो री अमोलक मोल॥*
मीराबाई कहती हैं कि मैंने तो अमोलक को ही मोल ले लिया। मै विवाद मे न उलझकर सीधी उसी की तरफ चली गई। जाने की विधि थी कि मैंने भीतर के स्वर को जगाया, भीतर जो पड़ी थी संभावना नाद की, उसे मैंने तलाशा। मीराबाई स्वर से परमात्मा तक पहुंची हैं, इसीलिये उनके स्वरों मे माधुर्य है।
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*याही कूं सब लोग जाणत हैं, लियो री आंखे खोल।*
वह सबके सामने विद्यमान है, बाहर-भीतर वही छाया है, बाधा केवल ये है कि लोग भीतर की आंख ही नहीं खोलते, मैने आंखें खोली और पा लिया। परमात्मा पर पर्दा नहीं है, पर्दा दृष्टि पर है।
दर्शन की क्षमता जगाने की आवश्यकता है, देखने की क्षमता। वही है जगाने वाला और वही है जागने वाला, जिस क्षण मनुष्य जानेगा उस क्षण पाएगा : परमात्मा के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। इस जीवन का सभी कुछ परमात्ममय है। आवश्यकता केवल ये है कि,
*लियो री आंखें खोल.......*
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आंख न खुली हो तो कुछ समझ मे नहीं आता और हम बड़े भेद खड़े कर लेते है। ये अलग, वह अलग हजार खंड कर लेते हैं। यहां एक ही अखंड, अनवरत, एक का ही वास है। आंख से जरा सा पर्दा हटते ही चमत्कार घटता है, कि परमात्मा के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है।*

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