सोमवार, 8 अप्रैल 2019

= *शूरातन का अंग ७१(१/४)* =

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卐 सत्यराम सा 卐 
*साचा सिर सौं खेल है, यह साधुजन का काम ।*
*दादू मरणा आसँघै, सोई कहैगा राम ॥* 
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**श्री रज्जबवाणी** 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
साभार विद्युत् संस्करण ~ Tapasvi Ram Gopal
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**शूरातन का अंग ७१** 
इस अंग में शूर तथा संत शूर के शौर्य संबंधी विचार कर रहे हैं - 
सांई सींत न पाइये, बातों मिल्या न कोय । 
रज्जब सौदा राम सौं, शिर बिन कदे न होय ॥१॥ 
परमात्मा मुफ्त नहीं प्राप्त होता, केवल बातों से किसी को भी नहीं मिला है, राम के साथ मिलन रूप व्यापार तो अपना जीवत्व अहंकार रूप शिर दिये बिना कभी भी नहीं होता । 
जब लग शिर डारै नहीं, तजे न तन की आस । 
तब लग राम न पाइये, जन रज्जब सुन दास ॥२॥ 
हे दास ! यथार्थ बात सुन, जब लग अहंकार रूप शिर नहीं काट डालता और शरीर समन्धी सुख की वा देवादि सुन्दर शरीर प्राप्ति की आशा नहीं छोड़ता तब तक राम नहीं प्राप्त होते । 
जन रज्जब रज रेख, राखे सो रण में रहै । 
जुध करता जग देख, सु यश साखि सारे कहैं ॥३॥ 
जो धूली की रेखा को धारण करता है अर्थात हाथी, अश्व, वीरों की पाद धूलि से नहीं धबराता वही रण में स्थिर रहता है, उसे युद्ध करते देख जगत के सभी लोग उसका यश कहते हैं, और वीरता की साक्षी देते हैं, वैसे ही संत सूर कामादि से युद्ध करता है तब उसका भी यशोगान होता है । 
जो साधू रण में रहै, खंड खंड कर गात१ । 
सो रज्जब रामहिं मिले, सुर नर आयें जात२ ॥४॥ 
जो साधू देहाध्यास१ का टुकड़ा टुकड़ा करके योग संग्राम में कामादि शत्रुओं से युद्ध करता है वह विजयी होकर राम से मिलता है उसके धाम की यात्रा२ करने नर गण तथा देवता भी आते हैं । 
(क्रमशः)

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