मंगलवार, 16 अप्रैल 2019

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🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*हो ऐसा ज्ञान ध्यान, गुरु बिना क्यों पावै ।*
*वार पार, पार वार, दुस्तर तिर आवै हो ॥*
*ज्योति जुगति बाट घाट, लै समाधि ध्यावै ।*
*परम नूर परम तेज, दादू दिखलावै हो ॥* 
*(श्री दादूवाणी ~ पद्यांश. २६४)*
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साभार ~ मुक्ता अरोड़ा स्वरूप निश्चय 

जिस दिन तुम गुरु से जुड़ जाओगे, जिस दिन संदेह के रहते हुए भी गुरु और तुम्हारे बीच एक सेतु बंध जाएगा, उसी दिन तुम्हारे जीवन में क्रांति शुरू हो जाएगी। क्योंकि गुरु के साथ जुड़ जाने का अर्थ है, केटलेटिक एजेंट के साथ जुड़ जाना। गुरु कुछ करता नहीं है, किए हुए का मूल्य भी नहीं होता। गुरु की मौजूदगी कुछ करती है।
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वैज्ञानिक एक तत्व को स्वीकार करते हैं, वह केटलेटिक एजेंट है। केटलेटिक एजेंट का अर्थ है कि जब दो तत्व मिलते हैं, तो सिर्फ इसकी मौजूदगी तीसरे की चाहिए, यह कुछ करता नहीं। इससे उन दो तत्वों में कुछ जाता नहीं। उन दो तत्वों को हम तोड़ें तो हम दो को ही पायेंगे, इस तीसरे को हम बिलकुल न पायेंगे। लेकिन अगर यह मौजूद न हो तो वे दो तत्व मिलते नहीं।
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यह बड़ी रहस्यपूर्ण घटना है। लेकिन वैज्ञानिकों ने इसे स्वीकार कर लिया क्योंकि कोई और उपाय नहीं है।
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आक्सिजन और हाइड्रोजन को मिलाना हो तो बिजली की चमक चाहिए; इसलिए आकाश में वर्षा में बिजली चमकती है। वह बिजली न चमके तो वर्षा न हो। बिजली की मौजूदगी चाहिए। बिजली की मौजूदगी में तत्क्षण आक्सिजन और हाइड्रोजन मिल जाते हैं और पानी बन जाता है। लेकिन अगर पानी को तुम तोड़ो तो हाइड्रोजन और आक्सिजन मिलते हैं, बिजली नहीं मिलती। उसकी सिर्फ मौजूदगी थी। उस मौजूदगी में घटना घट गई।
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अगर भौतिक जगत में केटलेटिक एजेंट होते हैं तो आध्यात्मिक जगत में भी होते हैं। गुरु केटलेटि्क एजेंट हैं। वह कुछ करेगा नहीं; तुम उससे जुड़ गए, उसकी मौजूदगी मिल गई, घटना तुम्हारे भीतर ही घटनी है। तुम्हारे भीतर के दो विभिन्न हिस्से उसकी मौजूदगी में मिल जायेंगे और एक हो जायेंगे। गुरु की आंखों के नीचे तुम एक हो जाओगे। और गुरु कुछ करेगा नहीं। इस तुम्हारी एकता में गुरु का कोई भी स्पर्श न पाया जाएगा। इस तुम्हारी आत्म-क्रांति में गुरु का कुछ भी दान नहीं मिलेगा–बस, उसकी मौजूदगी।
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इसलिए हमने गुरु के पास रहने को सत्संग कहा है। बस, उसके पास होना काफी है–उसकी उपस्थिति में। वह मौजूद है; और उसकी मौजूदगी में तुम बढ़ रहे हो और बड़े हो रहे हो और तुम्हारा चांद प्रगट हो रहा है।
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बिन बाती बिन तेल, ओशो

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