सोमवार, 28 जुलाई 2014

= विनती का अँग ३४ =(४६)

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टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*विनती का अँग ३४* 
*दया विनती* 
*राम विमुख युग युग दुखी, लख चौरासी जीव ।* 
*जामे१ मरे जग आवटे, राखणहारा पीव ॥४६॥* 
टीका ~ हे राम ! आपसे विमुख होकर यह जीव, चौरासी लाख योनि के कष्ट को जुग - जुग में प्राप्त होता है, जन्मता है, मरता है और जगत में आध्यात्मिक आधिदैविक, आधिभौतिक तापों से तप्त रहता है । हे मुख प्रीति के विषय पीव परमेश्वर ! आप ही इन दुःखों से रक्षा करने वाले हो ॥४६॥
(क्रमशः)

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