#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*एसौ फागुन षेलै संत कोइ,*
*जामैं उतपति प्रलै जीव होई ॥(टेक)*
*इनि मोह गुलाल लगायौ अङ्ग,*
*पुनि लोभ अरगजा लियौ संग ।*
*केसरि कुमति करी बनाइ,*
*अरु माया कौ मद पियौ अघाई ॥१॥*
*तहां मंदल मदन बजावै भेरि,*
*आसा अरु तृष्णा गांवैं टेरि ।*
*हाथनि में लीने क्रोध बंस,*
*इनि करि करि क्रीड़ा हत्यौ हंस ॥२॥*
ऐसी वासन्तिक उत्सव की क्रीड़ा कोई सन्त ही खेल सकता है जिसमें जन्म, उत्पत्ति एवं प्रलय – तीनों सम्मिलित हैं ॥टेक॥
इस क्रीड़ा में – मोह ने समस्त शरीर पर गुलाल लगाया । फिर लोभ ने अगर साथ में ली और कुमति को केसर का रूप दिया । तथा माया का मद्य तृप्तिपूर्वक पीया ॥१॥ वहाँ कामदेव ने मन्द मन्द मधुर स्वर में मृदंग बजाया, आशा एवं तृष्णा ने उसके साथ में संगत की । क्रोध ने हाथ में बांस लिया, तब इन सबने मिलकर खेल खेल में प्राण का हनन कर दिया ॥२॥
(क्रमशः)
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